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Kahani- हार की जीत

Updated: Mar 26, 2023



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Kahani - हार की जीत


एक मां को अपने बेटे साहूकार को अपने केंद्र और किसान को अपने लहलहाते खेत देख कर जो खुशी होती है वही खुशी आनंद बाबा भारती को अपने घोड़े को देखकर होती थी


भगवान के भजन के बाद जो भी समय बचाता वह इस्तेमाल घोड़े को समरपित हो जाता है वह घोड़ा भी बहुत ही सुंदर और बलशाली था उसके जैसा घोड़ा दूसरा नहीं था बाबा भारती ने उसका नाम सुल्तान रखा था अपने हाथ से उसकी मलिश करते खुद उसे खाना खिलाते और उसे देख देख कर खुश होते जितने लगन से बाबा भारती घोड़े का इस्तेमाल करते थे प्रेम करते थे ऐसा प्रेम तो कोई सच्चा प्रेमी भी अपनी प्रेमिका को ना करता होगा नागरिक जीवन छोड़ कर मंदिर में रहाणे लगे भगवान का भजन करते थे लेकिन सुल्तान से बिछड़ना उनके लिए संभव नहीं था।


वह सुल्तान के बिना न रह सकेगें यह बात उनके दिमाग में घर कर गई थी वह उसकी चाल पर फिदा थी कहते थे ऐसे चलता है जैसे मोर बदलते को देख कर नाच रहा हो गाँव के लोग भी इस प्रेम को देख कर जाँच करते हैं बाबा भारती रोज़ संध्या के समय सुल्तान पर चढ़कर 8 से 10 मिल का चक्कर लगते हैं तब उनको चैन आता था।


खड़क सिंह इलाके का एक बहुत ही प्रसिद्ध डाकू था लोग उसका नाम सुनकर कांपते थे एक दिन सुल्तान की कीर्ति उसके कान तक भी पहुंच गई उसका दिल भी सुल्तान को देखने के लिए करने लगा एक दिन वह दोपहर में बाबा भारती के पास पाहुंचा और नमस्कार करके उनके पास बैठ गया।


बाबा भारती ने पूछा क्या हाल है खड़क सिंह।

खड़क सिंह ने सर झुका कर उत्तर दिया बस दया है आपके बाबा।

खड़क सिंह इधर कैसे आना हुआ।

सुल्तान को देखने की इच्छा खींच लाई है।

बाबा ने कहा बहुत ही विचित्र जनवर है देखो तो प्रसन्न हो जाओगे।

बहुत दिनों से हमें देखने की इच्छा थी लेकिन आज ही समय निकल कर आ सका हूं।

बाबा और खड़क सिंह दोनो अस्तबल में पहुंचे बाबा ने बड़े घमंड से घोड़ा दिखाया खड़क सिंह ने भी बड़े आचार्य से घोड़ा देखा उसे सैकड़ों घोड़े देखे द परंतु ऐसा सुंदर और सजीला घोड़ा उसकी आंखों के सामने कभी नहीं आया था ऐसा घोड़ा तो खड़क सिंह के पास ही होना चाहिए ऐसी चीजों से साधु को क्या लाभ कुछ देर तक तो वह चुप चाप खड़ा देखता रहा उसके बाद वह बालकों की तरह दिल हो के बोला परंतु बाबा जी इसकी चाल न देखी तो क्या? बाबा जी भी तो तो इंसान ही अपने घोडे की प्रश्न सुना बहुत खुश हो गए घोडे को खोल कर बहार लाए और उसकी पीठ पर हाथ लगे और फिर अचानक घोड़े पर बैठक सवार हो गए घोड़ा बहुत तेजी से दौड़े उसकी चाल और उसकी गति देख कर खड़क सिंह के हृदय पर सांप लौट गया बुरा था और जो वास्तु से पसंद एक गए उपयोग पर अपना ही अधिकार समझौता था उसके पास तकत थी और आदमी भी जाते-जाते उसे कहा बाबा जी मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूंगा।


बाबा डर गए उन्हें रात को निंद नहीं आती थी सारी रात अस्तबल की रखवाली करने लगे हर समय खड़क सिंह के आने का भय लगा रहता परंतू कई माह बीत गई वह नहीं आया यहां तक ​​कि बाबा भी फिर कुछ निश्चित हो गए और इसको बुरा सपना समझकर भुल गए। एक दिन बाबा शाम के समय सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे द मुख पर खुशी थी कभी घोड़े को देखते- कभी उसके रंग को देखते और खुशी से फुले न समाते


अचानक एक आवाज़ सुनाई दी आवाज़ में करुणा थी बाबा ने घोडे को रोक लिया देखा एक अपहिज वृक्ष की छाया में बैठा है बाबा ने बोला तो मैं क्या कश्त है अपाहिज ने हाथ जोड़क कहा बाबा मैं बहुत दुखी हूं मुझे राम वाला गांव जाना है जो यहां से तीन मील है मुझे घोड़े पर बैठा लो परमात्मा भला करेगा।


बाबा भारती ने घोडे से उतर कर अपहिज को घोडे पर बिठाया और उसकी लगम पकड़ कर धीरे-धीरे चलते चले अचानक उन्हें झटका लगा लगाम उनके हाथ से छूट गई और वह आपहीज लगाम को पकड़कर घोडे को दौड़ा लिया जा रहा था उनके मुंह से दुख और निराशा से मिली भी एक चिख निकल गई वह अपहीज तो डाकू खड़क सिंह था।


बाबा भारती कुछ देर तक तो चुप रहे और उसके बाद में कुछ निश्चय करके पूरे जोर से बोले जरा रुक जाओ खड़क सिंह ने यह आवाज सुना घोड़ा रोक लिया और कहा बाबा जी अब यह घोड़ा नहीं दूंगा बाबा जी ने निकत जाकर उसकी आंखों में देखा और कहा यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका मैं इसे वापस करने को नहीं कहूंगा लेकिन एक प्रार्थना है तुम इस घटना का किसी से जिकर मत करना।


खड़क सिंह ने पूछा ऐसा क्यों बाबा बाबा बोले अगर लोगो को यह पता चल गया तो वह किसी भी अपाहिज पर विश्वास ना करेंगे और कोई गरीब की मदद नहीं करेगा यह कहकर बाबा मुड़ गए और अपने रास्ते चले गए।


बाबा के शब्द सुल्तान के मस्तिष्क में घूम रहे वह सोचने लगा कैसे उनके विचार है कैसा पवित्र भाव है जिस घोडे से इतना प्रेम था जिसके बिना कहते थे रह न सकुंगा जिसकी जिसकी रखवाली में काई रात सोया नहीं परंतू आज उनके मुंह पर दुख की एक रेखा तक नहीं दिखा दी सिर्फ यही ख्याल था कि कहीं लोग गरीब नहीं हैं पर विश्वास करना न छोड़ दे।


खड़क सिंह का हृदय परिवर्तन हो गया था रात्री के अंधेरे में खड़क सिंह बाबा भारती के मंदिर पंहुचा और चुप चाप घोडे को अस्तबल में ले जाकर बांध दिया।


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