Kahani- ठाकुर का कुआँ
Updated: Mar 26

जोखू ने लौटा जैसे ही पानी पीने के लिए मुंह के पास लिया उस में से बहुत तेज बदबू आई तो वह अपनी पत्नी गंगी से बोला यह कैसा पानी है इतनी खराब है कि पिया ही नहीं जा रहा और मेरा गला सुख रहा है और तू मुझे सड़ा हुआ पानी पिला रही है गंगी रोज शाम को कुएं से पानी भर के लती थी हलंकी कुआँ बहुत दूर था लेकिन कल जब पानी लाई तो उसमें बिल्कुल भी बदबू नहीं आ रही थी आज कैसे बदाबू आने लगी उसे सोचा जरूर कोई जानवर कुएं में गिर कर मर गया होगा लेकिन दूसरा पानी कहां से लेकर आ सकती है वो क्योंकि ठाकुर के कुए पर कौन चढ़ाएगा लोग दूर से भागेंगे साहूकार का कुआं गांव के मुहाने पर है परंतु वहां पर भी कौन पानी भरने देगा और गांव में कोई तीसरा कुआं है ही नहीं जोखू काई दिनों से बीमार है थोड़ी देर तो प्यास सहन की फिर जब सहन नहीं हुई तो बोला पानी दे दो मैं नाक बंद करके पी लेता हूं।
लेकिन गंगी ने पानी नहीं दिया वो जनता थी कि गंदा पानी पीने से बीमारी बढ़ जाएगी लेकिन उसे यह नहीं पता था कि अगर पानी को उबल दे तो उसमें से खतरनाक खत्म हो जाती है तो वह बोली यह पानी कैसे पियोगे गंदा पता नहीं कौन सा जानवर मारा हुआ है मैं दूसरे कुएं से पानी लेकर आती हूं
जोखू को बहुत आश्रय हुआ उससे पूछो दूसरे कौन से कुएं से पानी लाएंगेगंगी बोली ठाकुर और साहूकार के कुएं हैं क्या एक लोटा पानी नहीं भरने देंगे
ठाकुर के कुए पर गई तो हाथ पैर तोड़ देंगे और साहूकार एक पैसे का पांच पैसा मांगेगा गरीबों का दर्द कोई समझ नहीं हम तो मर जाते हैं तो कोई कंधा देने भी नहीं आता तुम्हें लगता है ऐसे लोग कुएं से पानी भरने देंगे शब्द कडवे तो द परंतु सत्य गंगा ने कुछ जवाब नहीं दिया लेकिन बदबुदार पानी भी नहीं पीने दिया रात के 9:00 बजे बज चुके मजदुर तो ठक के सो गए थे ठाकुर के दरबार में चार पांच बेफिकरा लोग जमा द और वहां बैठें बड़ी- बड़ी हांक रहे
इसी समय गंगी कुएं से पानी लेने पंहुची दीपक की धुंधली रोशनी कुएं पर आ रही थी तो गंगी एक दीवार की आड़ में बैठ कर मौके का इंतजार करने लगी गंगी वहां बैठे-बैठे सोचने लगी हम लोग नीचे क्यों हैं और यह लोग उन्हें क्यों हैं बस इसीलिये क्योंकि इनहोने अपने गले में एक धागा डाल दिया है चोरी करें यह जलसाजी पर यह करें झूठे मुक्द्मा करेन फिर भी यह और हम नीचे कुछ दिन पहले ही इस ठाकुर ने एक गडरिया की भेद चुरा ली और मार कर खा गया
कुए पर किसी के आने कीआहट हुई गंगी घबरा गई और दुबक कर वहि बैठक गाइ कुएं पर महिलाएं पानी भरने आई थी उन लोगों बात हो रही थी अपने अपने पतियों की बुराइयां कर रही थी कि जैसे ही खाना खाने बैठे बैठे हुकम दे दिया ताज पानी भर के लेके आओ हमको तो एक क्षण भी आराम नहीं करने देते जैसे हम इनकी नोकरानी हैं ऐसे ही बातें करते-करते वह लोग पानी भर के ले गई थोड़ी देर में बाकी लोग भी चले गए ठाकुर साहब के घर का दरवाजा भी बंद हो गया था
गंगी ने सोचा अब मैदान साफ है थोड़ी सी सावधान के साथ जाकर कुएं से पानी ले आऊं घडे से रस्सी बांधी और फिर इधर उधर चौकन्नी दृष्टि से देखा कहीं कोई देख तो नहीं रहा क्योंकि अगर इस समय उसे पकड़ा लिया तो उसे कोई माफी नहीं मिलने वाली लेकिन देवताओ को याद करके अपने कलेजा मजूबत किया और पानी भरने के लिए गढ़ा कुएं में डाल दिया जैसे ही घड़ा पानी से भरा औरगंगी उसे जल्दी- जलदी खींचने लगती है तभी ठाकुर साहब का दरवाजा खुल गया डर से गंगी के हाथ से रसी छूत गई और घड़ा धड़ से पानी में जाकर गिरा और तेज आवाज हुई
ठाकुर साहब कौन है कौन है पुकारते हुए कुएं की तरफ आए गंगी तेजी से कुएं से कुद कर भागी जा रही थी घर पहुंचकर गंगी ने देखा तो जोखू बेचारा वही गंदा पानी पी रहा था।