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100 Short Hindi stories with moral values – हिंदी कहानियाँ

Updated: Jul 12, 2023


Below are 100 very interesting stories written in Hindi. We hope you will like this Hindi story collection.Today we are writing Hindi short stories with moral values for kids. These stories are only for kids and also written in that lucid language. These Hindi stories with morals may also be useful for teachers.


Hindi short stories with moral for Kids 2023:


जब कभी कहानियों का जिक्र होता है, तो बच्चों का जिक्र भी जरूर किया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि कहानियां मुख्य रूप से बच्चों को ही सबसे ज्यादा पसंद होती हैं। कहानियां moral stories in hindi उनके लिए एक माध्यम हैं, जिनसे उन्हें नई प्रेरणा मिलती है और जीवन को सही तरीके से जीने का सीख मिलता है।

इन कहानियों से वे भविष्य में एक बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं। वास्तव में, ये छोटी-छोटी मोरल स्टोरीज हिंदी में सभी बच्चों के लिए प्रेरणादायक होती हैं। इनमें हमेशा कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। इसलिए हिंदी कहानियां छोटे से लेकर बड़े सभी को पसंद आती हैं।

इन बच्चों की कहानियों में आपको काफी भिन्नता देखने को मिलेगी। इन कहानियों के लेखक बच्चों के लिए अलग-अलग प्रकार की कहानियां लिखते हैं, जैसे राजा-रानी की कहानी, जानवरों की कहानी, भूतों की कहानी, पक्षियों की कहानी और बहुत कुछ।

लेकिन सभी कहानियों में कुछ न कुछ सीख अवस्य से दिया गया होता है। यहाँ से आप Hindi Motivational Stories पढ़ सकते है।


नैतिक कहानियों को पढ़ने का अलग ही मजा होता है, वैसों तो 500 से भी अधिक moral stories in hindi मौजूद हैं लेकिन उनमे से मैंने कुछ सबसे अच्छे कहानियों का लिस्ट आपके लिए बनाया है।


नीचे आप जितने भी moral stories in hindi को पढ़ने वाले हो वह बच्चों (kids) के लिए तो है ही लेकिन उसे पढ़कर बड़े लोग भी आनंद और सीख ले सकते हैं इसलिए आप short moral stories in hindi ध्यान से पढ़ें और समझें।



Table Of Content

1 अवंती

( Hindi short stories with moral for kids )


अवंती ने एक छोटी सी कपडे रंगाई की दुकान खोली और गांव वालों के लिए कपड़ा रंगने लगा। सब लोग उसकी रंगाई की तारीफ करने लगे धीरे-धीरे अवंती की दुकान चल निकली। गांव में एक सेठ था उसको अवंती से जलन हो गई।

अवंती को परेशान करने सेठजी एक कपडा लेकर उसकी दुकान पर गया और तेज आवाज देते बोला- अवंती जरा ये कपड़ा रंगना है बहुत तारीफ सुनी है तुम्हारी, आज देख भी लेते हैं तुम केसा काम करते हो।

अवंती ने सेठ जी से पूछा- कपड़े को केसा रंग में रंगना है?

सेठ जी ने कहा- रंग? रंग तो मेरी कोई खास पसंद नहीं है परंतु ये याद रखना मुझे काला, नीला, लाल, बेंगानी, नारंगी, सफेद, हरा, पीला ये सब रंग पसंद नहीं है।

अवंती समाज गया की सेठ जी उसे परेशान करने आए हैं।

सेठ जी ने बोला-बताओ फिर अपना कपडा लेने के कब आउ ?

अवंती बोला -वाप्स का तो ऐसा है सेठ जी सोमवार, मंगलवार, बुधवार, गुरुवार, शुकरवार, शनिवार, रविवार के इसके अलावा किसी भी दिन आ जाना।

सेठ जी समज गए की यहां उनकी होशियारी नहीं चलेगी।


कहानी की नैतिक शिक्षा- ईर्ष्या अच्छी बात नहीं है।

Moral of this short hindi story – jealousy is not good thing.


2. शेर का आसन

( Hindi short stories with moral for kids )


"शेर जंगल का राजा होता है। वह अपने जंगल में सबको भयभीत करता है। एक दिन शहर के राजा जंगल में घूमने गए। शेर ने देखा कि राजा हाथी पर आसन पर बैठा हुआ है। उसके मन में भी हाथी पर आसन लगाने का विचार आया। शेर ने सभी जानवरों को आदेश दिया कि हाथी पर एक आसन लगाया जाए। झट से आसन लग गया और शेर उछलकर हाथी पर आसन पर बैठ गया। जैसे ही हाथी चलने लगा, आसन हिलने लगा और शेर नीचे गिर गया। उसकी टांग टूट गई। शेर खड़ा होकर बोला - 'पैदल चलना ही ठीक रहता है”।


नैतिक शिक्षा –जिसका काम उसी को साजे , शेर ने आदमी की नक़ल करनी चाही और परिणाम गलत साबित हुआ।

Moral of this short hindi story –Never leave your own personality. And also not try to copy anyone’s identity.


3 जब मुझको साँप ने काटा

Short Hindi Story with Moral


एक दिन मैंने अपने अहाते में एक छोटा-सा साँप रेंगते देखा । वह धीरे- धीरे रेंग रहा था। मुझको देखते ही वह भागा और वहीं पर पड़े हुए नारियल के एक खोल में घुसकर छिप गया। मैंने पत्थर का एक टुकड़ा उठाया और उससे नारियल के खोल का मुँह बंद कर दिया। उसे लेकर मैं नानी के पास दौड़ गया।

मैंने कहा – नानी, देखो, मैंने साँप पकड़ा है। नानी चीख उठीं – साँप !

वह इतना घबरा गई कि लगीं ज़ोर-ज़ोर से चीखने- पुकारने । नाना ने सुना तो अंदर दौड़े आए। जब उन्हें पता चला कि नारियल के खोल के अंदर साँप है तो उन्होंने मेरे हाथ से उसे छीनकर दूर फेंक दिया। नन्हा साँप बाहर निकल आया और रेंगता हुआ पास की झाड़ी में गायब हो गया। नाना ने मुझसे कहा

खबरदार, फिर कभी साँप के पास मत जाना। साँप खतरनाक होता है।

उसी दिन शाम को मैं एक बर्र को पकड़ने की कोशिश कर रहा था कि उसने काट खाया। बड़ी ज़ोर से दर्द उठा। मुझे दर्द से कराहते देखकर नानी ने सोचा कि मुझे साँप ने काट लिया है। मैंने दौड़कर नानी को उँगली दिखाई। उन्होंने जल्दी से नाना को पुकारा ।

नाना तुरंत दौड़े आए और मेरी उँगली को देखा। जहाँ बर्र ने काटा था, वहाँ नीला निशान पड़ गया था। वह चट मुझे गोद में उठाकर बाहर भागे। बाग और धान के खेतों को पार करके भागते-भागते वह अपने घर से दूर एक छोटी-सी झोंपड़ी के सामने जाकर रुके। वहाँ पहुँचते ही उन्होंने आवाज़ लगाई।

इस बच्चे को साँप ने काट लिया है। नाना ने उससे कहा झाड़-फूँक कर दो। एक बूढ़ा आदमी बाहर निकला। वह साँप के काटने का मंत्र जानता

बूढ़ा मुझे झोंपड़ी में ले गया।

उसने मेरी उँगली देखी और बोला – चुपचाप बैठो। हिलना-डुलना मत। फिर पीतल के बर्तन में पानी लाया और मेरे सामने बैठकर मंत्र पढ़ने लगा।

मैं चाहता तो बहुत था कि उस बूढ़े को बता कि मुझे साँप ने नहीं, बर्र ने काटा है। पर मेरे नाना मुझे कसकर पकड़े रहे और मुझे बोलने ही नहीं दिया। जैसे ही मैं कुछ कहने को मुँह खोलता, वह डाँटकर कहते चुप! डर के मारे मैं चुप हो जाता। हमारे पीछे-पीछे हमारी नानी भी कई लोगों के साथ वहाँ आ पहुँची। सब लोग उदास खड़े देखते रहे।

तब तक मेरी उँगली का दर्द जा चुका था। फिर भी मुझे वहाँ ज़बरदस्ती बैठकर झाड़-फूँक करवानी पड़ रही थी। कुछ मिनट बाद बूढ़ा आदमी उठा। उसने उसी बर्तन के पानी से मेरी उँगली धोई और मुझे पिलाया भी। उसने मुझे बोलने से मना कर दिया ताकि दवा का पूरा असर हो। फिर वह नाना से बोला अब बच्चा खतरे से बाहर है। अच्छा हुआ, आप समय रहते मेरे पास ले आए। बड़े ज़हरीले साँप ने काटा था।

-

सब लोगों ने बूढ़े को उसके अद्भुत इलाज के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिया। घर लौटने के बाद नाना ने उसके लिए बहुत-सी चीजें भेंट में भेजीं।


नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story

always listen and obey the elders.


Below are 101 very interesting stories written in Hindi. We hope you will like this Hindi story collection. Hindi short stories with moral for Kids 2023: जब कभी कहानियों का जिक्र होता है, तो बच्चों का जिक्र भी जरूर किया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि कहानियां मुख्य रूप से बच्चों को ही सबसे ज्यादा पसंद होती हैं। कहानियां moral stories in hindi उनके लिए एक माध्यम हैं, जिनसे उन्हें नई प्रेरणा मिलती है और जीवन को सही तरीके से जीने का सीख मिलता है।
बस के नीचे बाघ Short Hindi Story with Moral

4. बस के नीचे बाघ

Short Hindi Story with Moral

किसी जंगल में एक छोटा बाघ खेल रहा था। खेलते-खेलते वह जंगल के पास वाली सड़क पर निकल आया। सड़क पर एक बस खड़ी थी।

छोटे बाघ ने देखा कि बस का दरवाज़ा खुला है। बाघ अपने अगले पंजे बस की सीढ़ी पर रखकर बस के भीतर देखने लगा ।

उसने देखा कि बस के भीतर आगे की तरफ़ से घर्र-घर्र की आवाज़ आ रही है और उसके पास एक आदमी बैठा है। छोटे बाघ ने यह भी देखा कि उस आदमी के सामने एक दीवार - सी है। लेकिन यह दीवार कुछ अजीब थी। इस दीवार में से बाहर की हर चीज़ साफ़-साफ़ दिखाई दे रही थी।

बाघ ने अपना सिर दाहिनी तरफ़ मोड़ा। उसने देखा कि बस में कई लोग बैठे हैं। आगे वाली सीट पर दो छोटी लड़कियाँ बैठी थीं।

अचानक छोटे बाघ को लगा कि लोग उससे डर रहे हैं और उसे भगाना चाहते हैं। तभी सामने की सीट पर बैठा आदमी उठा और अपनी दाहिनी ओर वाला दरवाज़ा खोलकर बाहर कूद गया।

बस के बाकी लोग भी तेज़ी से पीछे वाले दरवाज़े की तरफ़ भागने लगे।

लोगों को भागते देखकर छोटा बाघ कुछ घबराया। वह सीढ़ी से उतरा और बस के नीचे घुस गया। नीचे पहुँचकर वह बस के आगे वाले पहिए के पास जाकर दुबक गया।

लेकिन वहाँ उसे अच्छा नहीं लगा। वह फिर से बस के भीतर जाना चाहता था। थोड़ी देर बाद वह बाहर निकला और बस की सीढ़ी पर पंजे रखकर भीतर चला गया। वह सामने वाली सीट पर बैठकर बाहर देखने लगा ।

सामने से एक बस आ रही थी । उसमें बहुत सारे लोग बैठे थे। उन्हें देखकर छोटा बाघ सोचने लगा कि उसकी बस के लोग क्यों भाग गए।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.



5. मीठी सारंगी

Short Hindi Story with Moral

एक गाँव में एक सारंगी वाला आया। वह सारंगी बहुत अच्छी बजाता था। रात में जब उसने सारंगी बजाना शुरू किया तब गाँव के बहुत से लोग इकट्ठे हो गए। सारंगी की मीठी आवाज़ और सारंगी वाले के बजाने की कला से गाँव के लोग दंग रह गए। सब लोग कहने लगे- कैसी मीठी सारंगी है !

अहा! कितना आनंद आ रहा है।

वहीं पास में बैठा हुआ भोला भी लोगों की ये बातें सुन रहा था। वह मन ही मन कहने लगा- इन लोगों को सारंगी बहुत मीठी लगी लेकिन मेरा तो मुँह मीठा हुआ ही नहीं । ये सब झूठे हैं।

थोड़ी देर बाद उसने सोचा कि शायद सारंगी वाले के पास बैठने से मुँह मीठा हो जाए। इसलिए वह सारंगी वाले के पास जाकर बैठ गया ।

रात के तीन-चार बजे जब सारंगी वाले ने गाना-बजाना बंद कर दिया तब लोगों ने सारंगी वाले से कहा- महाराज ! आपकी सारंगी बहुत ही मीठी है। हमें बड़ा ही आनंद आया । दो-चार दिन यहीं ठहरिए ।

ये बातें सुनकर भोला मन ही मन झुंझलाया और सोचने लगा - ये लोग झूठ तो नहीं बोल सकते। सारंगी मीठी ज़रूर है पर मुझे न जाने स्वाद क्यों नहीं आया।

तब तक रात ज़्यादा हो गई थी। इस कारण लोग घर नहीं गए। वहीं चौपाल में सो गए। सारंगी वाले ने भी सारंगी पर खोली चढ़ाई और उसे अपने सिरहाने रख कर सो गया। पर भोला को चैन कहाँ था? जब लोग नींद में खर्राटे लेने लगे तब उसने चुपके से उठकर वह सारंगी उठा ली और ऊपर का खोल उतार कर उसे जीभ से चाटा। कुछ स्वाद नहीं आया। अब उसने सारंगी को खूब हिलाया । उसके छेद को मुँह के पास लगाकर मुँह में उड़ेला । पर सारंगी से एक भी मीठी बूँद नहीं निकली। वह लोगों की बेवकूफ़ी पर बहुत ही झुंझलाया। अब की बार उसने सारंगी को गाँव से बाहर दूर ले जाकर फेंक दिया। वह लोगों की बेवकूफ़ी पर हँसता हुआ अपनी जगह पर आकर चुपचाप सो गया।

सवेरा होने पर जब सारंगी अपनी जगह पर नहीं मिली तो सब लोग और सारंगी वाला बड़े दुखी हुए। लोग कहने लगे- बड़ी मीठी सारंगी थी। पता नहीं कौन ले गया । भोला इस बात को न सुन सका भोला और गुस्से से बोला- क्या खाक मीठी थी ! मैंने तो उसे अच्छी तरह चाटा था। उसमें ज़रा भी मिठास नहीं थी। तुम सब लोग झूठे हो और बाबाजी की खुशामद करते हो ।

लोगों ने पूछा- पर सारंगी है कहाँ ? उसने कहा— गाँव के बाहर पड़ी है। लोगों ने भोला की बेवकूफ़ी पर सिर पीट लिया ।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.


6. मेरी किताब

Short Hindi Story with Moral

माँ ने वीरू को एक संदेश देकर अपनी बहन के पास भेजा। मौसी ने प्यार से वीरू को अंदर बुलाया और बैठक में ले गई। बैठक में कदम रखते ही वीरू अचरज से ठिठक गई। उसने सोचा - बाप रे! इतनी सारी किताबें !

वहाँ नीचे से ऊपर तक किताबों से भरे खानों वाली दो लंबी दीवारें थीं।

वह आँखें फाड़े देखती रही।अंत में उसने साहस करके पूछा- क्या आपके पास बच्चों के लिए भी किताबें हैं?

मौसी ने कहा- हाँ, यह देखो, यह वाला खाना और यह वाला । वीरू ने हैरानी से कहा- इतनी ढेर सारी किताबें ! मेरे पास तो इतनी किताबें नहीं हैं।

मौसी ने कहा- यदि तुम चाहो तो मैं पढ़ने के लिए तुम्हें किताबें दे सकती हूँ । तुम्हें किस तरह की किताबें सबसे अधिक पसंद हैं?

वीरू ने धीरे से कहा- मुझे मालूम नहीं।

मौसी ने एक किताब निकाल कर वीरू को पकड़ाई और कहा- तुम यह किताब पढ़कर देखो ।

वीरू घबराकर पीछे हटी और बोली- बाप रे! यह तो बहुत मोटी है।

मौसी ने सुझाव दिया- अच्छा, तो फिर शायद यह वाली ठीक रहेगी।

वीरू बोली- यह बहुत बड़ी है, मेरे बस्ते में नहीं आएगी।

मौसी ने एक तीसरी किताब दिखाई - और इसके बारे में क्या खयाल है?

वीरू ने किताब के पन्ने पलटे और यह फ़ैसला किया- इसमें पढ़ने के लिए बहुत कम है, इतनी छोटी-छोटी तस्वीरें ! और यह किताब बहुत पतली है। मौसी ने कहा- वीरू, मुझे तो लगता है कि मैं तुम्हारे लिए किताब नहीं चुन सकती। ऐसा करना, अगली बार जब तुम आओ तो अपने साथ एक फ़ुट्टा लेती आना।

वीरू ने पूछा- फ़ुट्टा, क्यों? मौसी ने हँसकर कहा- तुम्हें जितनी मोटी किताब चाहिए तुम नापकर ले लेना। ठीक है न!

वीरू ने माँ के भेजे हुए कागज़ को मेज़ पर रखा और भाग खड़ी हुई।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.



7. दोस्त की मदद

Short Hindi Story with Moral

किसी तालाब में एक कछुआ रहता था। तालाब के पास माँद में रहने वाली एक लोमड़ी से उसकी दोस्ती हो गई। एक दिन वे तालाब के किनारे गपशप कर रहे थे कि एक तेंदुआ वहाँ आया। दोनों अपने-अपने घर की ओर जान बचाकर भागे। लोमड़ी तो सरपट दौड़कर अपनी माँद में पहुँच गई पर कछुआ अपनी धीमी चाल के कारण तालाब तक नहीं पहुँच सका। तेंदुआ एक छलाँग में उस तक पहुँच गया।

कछुए को कहीं छुपने का भी मौका न मिला। तेंदुए ने कछुए को मुँह में पकड़ा और उसे खाने के लिए एक पेड़ के नीचे चला गया लेकिन दाँतों और नाखूनों का पूरा ज़ोर लगाने पर भी कछुए के सख्त खोल पर खरोंच तक नहीं आई। लोमड़ी अपनी माँद से यह देख रही थी । उसने कछुए को बचाने की तरकीब सोची। उसने माँद से झाँककर बाहर देखा और भोलेपन के साथ बोली- तेंदुए जी, कछुए क खोल को तोड़ने का मैं आसान तरीका बताती हूँ। इसे पानी में फेंक दो। थोड़ी देर में पानी से इसका खोल नरम हो

जाएगा। चाहो तो आज़माकर देख लो !

तेंदुए ने कहा- ठीक है, अभी देख लेता हूँ!

यह कहकर उसने कछुए को पानी में फेंक दिया।

बस फिर क्या था,गया कछुआ पानी में!

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.




 Short Hindi stories
Short Hindi stories

8 अधिक बलवान कौन ?

Short Hindi Story with Moral


एक बार हवा और सूरज में बहस छिड़ गई।

हवा ने सूरज से कहा- से कहा- मैं तुमसे अधिक बलवान हूँ। ने हवा से कहा- मुझमें तुमसे ज्यादा ताकत है। इतने में हवा की नज़र एक आदमी पर पड़ी। हवा ने कहा- इस तरह बहस करने से कोई फ़ायदा नहीं है। जो इस आदमी का कोट उतरवा दे, वही ज़्यादा बलवान है।


सूरज हवा की बात मान गया। उसने कहा- ठीक है। दिखाओ अपनी ताकत।

हवा ने अपनी ताकत दिखानी शुरू की। आदमी की टोपी उड़ गई। पर कोट उसने अपने दोनों

हाथों से शरीर से लपेटे रखा और जल्दी-जल्दी कोट के बटन बंद कर लिए।हवा और ज़ोर से चलने लगी। अंत में आदमी नीचे ही गिर पड़ा। पर कोट उसके शरीर पर ही रहा। अब हवा थक गई थी।

सूरज ने कहा - हवा, अब तुम मेरी ताकत देखो।

सूरज तपने लगा।

आदमी ने कोट के बटन खोल दिए ।सूरज की गर्मी और बढ़ी।

आदमी ने कोट उतार दिया और उसे हाथ में लेकर चलने लगा।

सूरज ने कहा- देखी मेरी ताकत ? उतरवा दिया न कोट ? हवा ने सूरज को नमस्कार किया और कहा -मान तुम्हारी ताकत को ।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.




9. भालू ने खेली फ़ुटबॉल

Short Hindi Story with Moral


सर्दियों का मौसम था। सुबह का वक्त। चारों ओर कोहरा ही कोहरा | एक शेर का बच्चा सिमटकर गोल - मटोल बना जामुन के पेड़ के नीचे सोया हुआ था।

इधर भालू साहब सैर पर निकल तो आए थे लेकिन पछता रहे थे। तभी उनकी नज़र जामुन के पेड़ के नीचे पड़ी।

आँखें फैलाई, अक्ल दौड़ाई - अहा फ़ुटबॉल। सोचा, चलो इससे खेलकर कुछ गर्मी हासिल की जाए ।

आव देखा न ताव। भालू जी ने पैर से उछाल दिया शेर के बच्चे को । हड़बड़ी में शेर का बच्चा दहाड़ा और फिर पेड़ की एक डाल पकड़ ली।

साहब जल्दी ही मामला समझ गए। पछताए, लेकिन अगले ही पल दौड़कर फ़ुर्ती से दोनों हाथ बढ़ाए और शेर के बच्चे को लपक लिया।

अरे यह क्या! शेर का बच्चा फिर से उछालने के लिए कह रहा था।

एक बार फिर भालू दादा ने उछाला।

दो बार...

तीन बार...

फिर

बार-बार यही होने लगा।

शेर के बच्चे को उछलने में मज़ा आ रहा था। परंतु भालू थककर परेशान हो गया था। भालू थककर

ओह, किस आफ़त में आ फँसा ।

बारहवीं बार उछालते ही भालू ने घर की ओर दौड़ लगाई और गायब हो गया।

अब की बार शेर का बच्चा धड़ाम से ज़मीन पर आ गया। डाल भी टूट गई।

तभी माली वहाँ आया और शेर के बच्चे पर बरस पड़ा -

डाल तोड़ दी पेड़ की । लाओ हर्जाना।

शेर के बच्चे ने कहा- ज़रा ठीक तो हो लूँ। माली ने कहा ठीक है।

मैं अभी आता माली के वहाँ से जाते ही शेर का बच्चा भी नौ दो ग्यारह हो लिया। उसने सोचा-

जान बची तो लाखों पाए।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.


10. शेखीबाज़ मक्खी

Short Hindi Story with Moral

एक था जंगल। उस जंगल में एक शेर भोजन करके आराम कर रहा था। इतने में एक मक्खी उड़ती - उड़ती वहाँ आ पहुँची । शेर ने दो-तीन दिनों से स्नान नहीं किया था। इसलिए मक्खी शेर के कान के एकदम पास भिन-भिन-भिन करने लगी। शेर को बहुत मुश्किल से नींद आई थी। उसने पंजा उठाया। मक्खी उड़ गई ... लेकिन फिर से भिन-भिन शुरू हो गई।

अब शेर को गुस्सा आया। वह दहाड़ा–अरे मक्खी, दूर हट। वरना तुझे अभी जान से मार डालूँगा।

मक्खी ने धीरे से कहा - छि... छि... ! जंगल के राजा के मुँह से ऐसी भाषा कहीं शोभा देती है?

शेर का गुस्सा बढ़ गया। उसने कहा एक तो मुझे सोने नहीं देती, ऊपर से मेरे सामने जवाब देती है! चुप

हो जा... वरना अभी...

मक्खी बोली वरना क्या कर लोगे? मैं क्या तुमसे डर जाऊँगी? मैं तो तुमसे भी लड़ सकती हूँ। हिम्मत हो तो आ जाओ...!

शेर आग बबूला हो उठा। उसने कान के पास पंजा मारा। मक्खी तो उड़ गई पर कान ज़रा छिल गया। मक्खी उड़कर शेर की नाक पर बैठी तो उसने मक्खी को फिर पंजा मारा। मक्खी उड़ गई। अबकी बार शेर की नाक छिल गई। मक्खी कभी शेर के माथे पर बैठती, कभी गाल पर तो कभी गर्दन पर।

शेर पंजा मारता जाता और खुद को घायल करता जाता... मक्खी तो फट से उड़ जाती।

अंत में शेर ऊब गया, थक गया। वह बोला मुझे छोड़ो। मैं हारा और तुम जीतीं बस।

मक्खी घमंड में चूर होकर उड़ती - उड़ती आगे बढ़ी।

सामने एक हाथी मिला। मक्खी ने कहा अरे हाथी... मुझे प्रणाम कर... मैंने जंगल के राजा शेर को हराया है। इसलिए जंगल में अब मेरा राज चलेगा। हाथी ने सोचा, इस पागल मक्खी से बहस करने में समय कौन बर्बाद करे।

हाथी ने सूँड़ ऊपर उठाकर मक्खी को प्रणाम किया और आगे बढ़ गया। सामने से आ रही लोमड़ी ने यह सब देखा । लोमड़ी मंद-मंद मुस्कराने लगी। इतने में मक्खी ने लोमड़ी से कहा - अरे ओ लोमड़ी, चल मुझे प्रणाम कर! मैंने जंगल के राजा शेर और विशालकाय हाथी को भी हरा दिया है।

लोमड़ी ने उसे प्रणाम किया। फिर धीरे से बोली - धन्य हो मक्खी रानी धन्य हो! धन्य है आपका

जीवन और धन्य हैं आपके माता-पिता। लेकिन मक्खी रानी, उधर वह मकड़ी दिखाई दे रही है न, वह आपको गाली दे रही थी। उसकी ज़रा खबर लो न!

यह सुनकर मक्खी गुस्से से लाल हो उठी। मक्खी बोली उस मकड़ी को तो मैं चुटकी बजाते खत्म कर

देती हूँ।

यह कहते हुए मक्खी मकड़ी की तरफ झपटी और मकड़ी के जाले में फँस गई। मक्खी जाले से छूटने की ज्यों-ज्यों कोशिश करती गई त्यों-त्यों और भी अधिक फँसती गई... अंत में वह थक गई, हार गई । यह देखकर लोमड़ी मंद-मंद मुस्कराती हुई वहाँ से चलती बनी।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.


Below are 101 very interesting stories written in Hindi. We hope you will like this Hindi story collection. Hindi short stories with moral for Kids 2023: जब कभी कहानियों का जिक्र होता है, तो बच्चों का जिक्र भी जरूर किया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि कहानियां मुख्य रूप से बच्चों को ही सबसे ज्यादा पसंद होती हैं। कहानियां moral stories in hindi उनके लिए एक माध्यम हैं, जिनसे उन्हें नई प्रेरणा मिलती है और जीवन को सही तरीके से जीने का सीख मिलता है।
बहादुर बित्तो Short Hindi Story with Moral

11. बहादुर बित्तो

Short Hindi Story with Moral

एक किसान था। उसकी बीवी का नाम था – बित्तो । एक दिन किसान ने बित्तो से कहा सुबह जब मैं खेत में हल चला रहा था तो एक शेर ने आकर कहा – किसान - किसान ! अपना बैल मुझे दे दे वरना मैं तुझे खा जाऊँगा।

बित्तो ने उससे पूछा – तूने क्या जवाब दिया ?

किसान ने कहा मैंने कहा, तू यहीं रुक, मैं घर जाकर अपनी गाय ले आता हूँ। अगर तू बैल खा लेगा तो हम लोग भूखों मर जाएँगे । यह सुनकर बित्तो को बहुत गुस्सा आया । उसने किसान को फटकारा- घर की गाय शेर को खिलाते तुझे शर्म नहीं आती? अगर गाय चली गई तो घर में न दूध, न लस्सी । बच्चे रोटी किस चीज़ के साथ खाएँगे? बित्तो को एक तरकीब सूझी। उसने कहा - तुम फ़ौरन खेत में जाकर शेर से कहो कि मेरी बित्तो तुम्हारे खाने के लिए एक घोड़ लेकर आ रही है।

किसान डरता-डरता शेर के पास गया। उसने कहा हमारी गाय तो बड़ी मरियल है। उससे तुम्हारा क्या बनेगा! मेरी बीवी अभी तुम्हारे लिए एक मोटा-ताज़ा घोड़ा लेकर आ रही है।

बित्तो ने सिर पर एक बड़ा-सा पग्गड़ बाँधा और हाथ में दराँती लेकर घोड़े पर सवार हो गई । घोड़ा दौड़ाती वह खेत पर पहुँची और ज़ोर से चिल्लाई – अरे किसान! तू तो कहता था कि तूने चार शेरों को

फाँस कर रखा है। यहाँ तो सिर्फ़ एक ही है। बाकी कहाँ गए ? फिर वह घोड़े से उतरकर शेर की तरफ़ बढ़ी और कहने लगी बात नहीं, नाश्ते में एक ही शेर काफ़ी है। इतना सुनना था कि शेर डर के मारे काँपने लगा और भाग खड़ा हुआ। यह देखकर बित्तो बोली – देखा, इसे कहते हैं हिम्मत! तुम तो इतने डरपोक हो कि घर की गाय शेर के हवाले कर रहे थे।

उधर मारे भूख के शेर की आँतें छटपटा रही थीं। एक भेड़िए ने पूछा महाराज, क्या मामला है? आप आज बहुत उदास दिखाई दे रहे हैं!

शेर ने कहा कुछ न पूछो, आज मुश्किल से जान बची है। आज एक ऐसी राक्षसी से पाला पड़ गया जो रोज़ सुबह चार शेरों का नाश्ता करती है।

यह सुनकर भेड़िया बहुत हँसा । वह सुबह झाड़ी में छिपकर सारा तमाशा देख रहा था। उसने कहा भोले बादशाह! वह तो बित्तो थी, जिसे आपने राक्षसी समझ लिया था। आप इस बार फिर कोशिश करके देखिए। अगर बैल आपके हाथ न आए तो मेरा नाम भेड़िया नहीं। बहुत कहने-सुनने पर शेर किसान के खेत में जाने के लिए तैयार हो गया। लेकिन उसने भेड़िए से कहा तुम अपनी पूँछ मेरी पूँछ से बाँध लो।

दोनों जने पूँछ बाँधकर चल पड़े। उन्हें देखते ही किसान के होश - हवास गुम हो गए। वह डर से थर-थर काँपने लगा। लेकिन बित्तो बिल्कुल नहीं घबराई । भेड़िए के पास जाकर उसने कहा क्यों रे भेड़िए, तू तो अभी वादा करके गया था कि तू अपनी पूँछ से चार शेर बाँधकर लाएगा ! लेकिन तू तो सिर्फ़ एक ही शेर लाया है ! वह भी मरियल-सा! भला इसे खाकर मेरी भूख मिट सकती है? खैर, इस वक्त यही सही। इतना कहकर बित्तो आगे बढ़ी।

शेर के होश-हवास उड़ गए। उसने समझा कि भेड़िए ने उसके साथ धोखा किया है। वह फ़ौरन वहाँ से भागा । भेड़िया बहुत चीखा-चिल्लाया, लेकिन शेर ने एक न सुनी। तेज़ी से भागता चला गया।

किसान और बित्तो आराम से रहने लगे। उन्हें मालूम था कि अब शेर उनके खेत की तरफ़ फिर कभी नहीं आएगा।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.


12. टिपटिपवा

Short Hindi Story with Moral


एक थी बुढ़िया । उसका एक पोता था। पोता रोज़ रात में सोने से पहले दादी से कहानी सुनता। दादी रोज़ उसे तरह-तरह की कहानियाँ सुनाती । एक दिन मूसलाधार बारिश हुई। ऐसी बारिश पहले कभी नहीं हुई थी। सारा गाँव बारिश से परेशान था । बुढ़िया की झोंपड़ी में पानी जगह-जगह से टपक रहा था टिपटिप-टिपटिप। इस बात से बेखबर पोता दादी की गोद में लेटा कहानी सुनने के लिए मचल रहा था। बुढ़िया खीझकर बोली - अरे बचवा, का कहानी सुनाएँ? ई टिपटिपवा से जान बचे तब न! पोता उठकर बैठ गया।

उसने पूछा दादी, ये टिपटिपवा कौन है? टिपटिपवा क्या शेर-बाघ से भी बड़ा होता है?

दादी छत से टपकते हुए पानी की तरफ़ देखकर बोलीं हाँ

बचवा, न शेरवा के डर,न बघवा के डर। डर त डर, टिपटिपवा के डर ।

संयोग से मुसीबत का मारा एक बाघ बारिश से बचने के लिए झोंपड़ी के पीछे बैठा था । बेचारा बाघ बारिश से घबराया हुआ था। बुढ़िया की बात सुनते ही वह और डर गया।

अब यह टिपटिपवा कौन-सी बला है? ज़रूर यह कोई बड़ा जानवर है। तभी तो बुढ़िया शेर - बाघ से ज़्यादा टिपटिपवा से डरती है। इससे पहले कि बाहर आकर वह मुझ पर हमला करे, मुझे ही यहाँ से भाग जाना चाहिए ।

बाघ ने ऐसा सोचा और झटपट वहाँ से दुम दबाकर भाग चला।

उसी गाँव में एक धोबी रहता था। वह भी बारिश से परेशान था। आज सुबह से उसका गधा गायब था। सारा दिन वह बारिश में भीगता रहा और जगह-जगह गधे को ढूँढ़ता रहा लेकिन वह कहीं नहीं मिला।

धोबी की पत्नी बोली - जाकर गाँव के पंडित जी से क्यों नहीं पूछते ? वे बड़े ज्ञानी हैं। आगे-पीछे, सबके हाल की उन्हें खबर रहती है।

पत्नी की बात धोबी को जँच गई। अपना मोटा लट्ट उठाकर वह पंडित जी के घर की तरफ़ चल पड़ा। उसने देखा कि पंडित जी घर में जमा बारिश का पानी उलीच - उलीचकर फेंक रहे थे ।

धोबी ने बेसब्री से पूछा-महाराज, मेरा गधा सुबह से नहीं मिल रहा है। ज़रा पोथी बाँचकर बताइए तो वह कहाँ है?

सुबह से पानी उलीचते-उलीचते पंडित जी थक गए थे। धोबी की बात सुनी तो झुंझला पड़े और बोले

―मेरी पोथी में तेरे गधे का पता ठिकाना लिखा है क्या, जो आ गया पूछने ? अरे, जाकर ढूँढ़ उसे किसी गढ़ई - पोखर में ।और पंडित जी लगे फिर पानी उलीचने । धोबी वहाँ से चल दिया। चलते-चलते वह एक तालाब के पास पहुँचा । तालाब के किनारे ऊँची-ऊँची घास उग रही थी। धोबी घास में गधे को ढूँढ़ने लगा। किस्मत का मारा बेचारा बाघ टिपटिपवा के डर से वहीं घास में छिपा बैठा था। धोबी को लगा कि बाघ ही उसका गधा है। उसने आव देखा न ताव और लगा बाघ पर मोटा लट्ठ बरसाने । बेचारा बाघ इस अचानक हमले से एकदम घबरा गया।

बाघ ने मन ही मन सोचा - लगता है यही टिपटिपवा है। आखिर इसने मुझे ढूँढ़ ही लिया। अब अपनी जान बचानी है तो यह जो कहे, चुपचाप करते जाओ।

आज तूने बहुत परेशान किया है। मार-मारकर मैं तेरा कचूमर निकाल दूँगा – ऐसा कहकर धोबी ने बाघ का कान पकड़ा और उसे खींचता हुआ घर की तरफ़ चल दिया। बाघ बिना चूँ-चपड़ किए भीगी बिल्ली बना धोबी के पीछे-पीछे चल दिया। घर पहुँचकर धोबी ने बाघ को खूँटे से बाँध दिया और सो गया ।

सुबह जब गाँव वालों ने धोबी के घर के बाहर खूँटे से एक बाघ को बँधे देखा तो उनकी आँखें खुली की खुली रह गईं।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.


13. क्योंजीमल और कैसे - कैसलिया

Short Hindi Story with Moral

इनसे मिलिए - ये हैं, क्योंजीमल । बात-बात पर पूछ देते हैं- क्यों- क्यों- क्यों? भले ही आप से जवाब देते बने या नहीं। पता नहीं क्यों! और ये हैं उनके दोस्त - कैसे-कैसलिया। ये भी कोई कम नहीं हैं, मौका लगते ही पूछ देते हैं - कैसे-कैसे-कैसे?

भूले-भटके कभी दोनों से एक साथ मुलाकात हो गई तो क्यों और कैसे के बीच ही भटकते रहेंगे आप। क्यों- क्यों- क्यों? कैसे-कैसे-कैसे ? पढ़िए और पता कीजिए ।

गुरुजी नमस्ते! किधर चले? नमस्ते! ज़रा बाज़ार जा रहा हूँ। बाज़ार? क्यों-क्यों-क्यों? गेहूँ पिसवाना है, इसलिए। बाज़ार? कैसे-कैसे-कैसे ? साइकिल पर! वैसे निकला तो पैदल था, पर थैली देख कर शिवदास ने अपनी गाड़ी दे दी।

अच्छा, गेहूँ पिसवाना है। क्यों-क्यों-क्यों?

अरे, आटा जो चाहिए। पिसवाना?

कैसे-कैसे-कैसे?

चक्की में भई ।

आटा ? क्यों- क्यों-क्यों?

क्यों भैया रोटी नहीं बनाएँगे?

रोटी? कैसे-कैसे-कैसे ?

अरे आटे को सानेंगे, बेलेंगे, तवे पर पकाएँगे, आग पर फुलाएँगे ।

सानेंगे? क्यों-क्यों-क्यों?

सुनो-सने आटे में थोड़ा पानी रहता है न? आग पर तपने से यही पानी भाप बनकर बिली हुई रोटी को पकाता है, इसलिए सानेंगे।

सानेंगे, कैसे-कैसे-कैसे ? तुमने कभी देखा नहीं है क्या ? परात पर आटा निकालेंगे, चुटकी भर नमक डालेंगे, फिर धीरे-धीरे एक हाथ से पानी डालते हुए सानना शुरू करेंगे। पहले-पहले सारा आटा बिखरेगा, फिर उसे समेटेंगे, और अच्छे से सान लेंगे। समझे?

अच्छा, परात पर! क्यों- क्यों- क्यों? कैसे-कैसे-कैसे?

गुरुजी : तुम लोगों की क्यों और कैसे में तो मेरी चक्की ही बंद हो जाएगी! बंद हो जाएगी! क्यों- क्यों- क्यों?बंद हो जाएगी! कैसे-कैसे-कैसे ? लेकिन तब तक गुरुजी साइकिल पर सवार फुर्र हो चुके हैं।

नैतिक शिक्षा –

बड़ों की हमेशा सुनें और उनका पालन करें।

Moral of this short hindi story –

always listen and obey the elders.


14 मां की ममता –

लघु हिंदी कहानियाँ नैतिक शिक्षा सहित


आम के पेड़ पर एक सुरीली नाम की चिड़िया रहती थी। उसने खूब सुंदर घोंसला बनाया हुआ था। जिसमें उसके छोटे-छोटे बच्चे साथ में रहते थे। वह बच्चे अभी उड़ना नहीं जानते थे, इसीलिए सुरीली उन सभी को खाना ला कर खिलाती थी।

एक दिन जब बरसात तेज हो रही थी। तभी सुरीली के बच्चों को जोर से भूख लगने लगी। बच्चे खूब जोर से रोने लगे, इतना जोर की देखते-देखते सभी बच्चे रो रहे थे। सुरीली से अपने बच्चों के रोना अच्छा नहीं लग रहा था। वह उन्हें चुप करा रही थी, किंतु बच्चे भूख से तड़प रहे थे इसलिए वह चुप नहीं हो रहे थे।

सुरीली सोच में पड़ गई , इतनी तेज बारिश में खाना कहां से लाऊंगी। मगर खाना नहीं लाया तो बच्चों का भूख कैसे शांत होगा। काफी देर सोचने के बाद सुरीली ने एक लंबी उड़ान भरी और पंडित जी के घर पहुंच गई।

पंडित जी ने प्रसाद में मिले चावल दाल और फलों को आंगन में रखा हुआ था। चिड़िया ने देखा और बच्चों के लिए अपने मुंह में ढेर सारा चावल रख लिया। और झटपट वहां से उड़ गई।


घोसले में पहुंचकर चिड़िया ने सभी बच्चों को चावल का दाना खिलाया। बच्चों का पेट भर गया, वह सब चुप हो गए और आपस में खेलने लगे।

चिड़िया सोचने लगी, कि जब मैंने अपने बच्चों के लिए पंडित जी के घर से खाना लाया तो मेरी भूख भी शांत हो गई। जिस प्रकार मैंने अपने बच्चों के लिए जीवनदायी कदम उठाया है, वैसे ही माँ जीवन के हर मोड़ पर अपने बच्चों के हित में कदम उठाती हैं।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि माँ के प्रति हमें सदैव सम्मान और आदर रखना चाहिए। माँ की ममता दुनिया में सबसे अमूल्य वस्तु है। माँ के बिना जीवन अधूरा है। इसलिए हमें अपनी माँ की कभी भी बेजुबानी और असम्मानित नहीं करना चाहिए। हमेशा उन्हें सम्मान देना चाहिए और उनकी सेवा करनी चाहिए।

इस कहानी से हमें यह भी सीख मिलती है कि हमें किसी भी समस्या के सामने हिम्मत हार नहीं माननी चाहिए। हमेशा जीवन में ऐसे लोग होते हैं जो हमें मदद करते हैं। हमें उनसे शर्मिंदगी महसूस करने की जगह, उनकी मदद स्वीकार करनी चाहिए।


Below are 101 very interesting stories written in Hindi. We hope you will like this Hindi story collection. Hindi short stories with moral for Kids 2023: जब कभी कहानियों का जिक्र होता है, तो बच्चों का जिक्र भी जरूर किया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि कहानियां मुख्य रूप से बच्चों को ही सबसे ज्यादा पसंद होती हैं। कहानियां moral stories in hindi उनके लिए एक माध्यम हैं, जिनसे उन्हें नई प्रेरणा मिलती है और जीवन को सही तरीके से जीने का सीख मिलता है।
Short Hindi Story with Moral

15 बलवान कछुए की मूर्खता

Short Hindi Story with Moral


एक सरोवर में विशाल नाम का एक कछुआ रहा करता था। उसके पास एक मजबूत कवच था। यह कवच शत्रुओं से बचाता था। कितनी बार उसकी जान कवच के कारण बची थी।

एक बार भैंस तालाब पर पानी पीने आई थी। भैंस का पैर विशाल पर पड़ गया था। फिर भी विशाल को नहीं हुआ। उसकी जान कवच से बची थी। उसे काफी खुशी हुई क्योंकि बार-बार उसकी जान बची रही थी।

यह कवच विशाल को कुछ दिनों में भारी लगने लगा। उसने सोचा इस कवच से बाहर निकल कर जिंदगी को जीना चाहिए। अब मैं बलवान हो गया हूं, मुझे कवच की जरूरत नहीं है।

विशाल ने अगले ही दिन कवच को तालाब में छोड़कर आसपास घूमने लगा।

अचानक हिरण का झुंड तालाब में पानी पीने आया। ढेर सारी हिरनिया अपने बच्चों के साथ पानी पीने आई थी।

उन हिरणियों के पैरों से विशाल को चोट लगी, वह रोने लगा।

आज उसने अपना कवच नहीं पहना था।

विशाल रोता-रोता वापस तालाब में गया और कवच को पहन लिया। कम से कम कवच से जान तो बचती है।

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें कभी भी अपनी ताकत और सामर्थ्य को उन्नत करने की चाह नहीं होनी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हमारी इस चाह के चलते हम कुछ ऐसा कर दें जिससे हमारे लिए बड़ी नुकसान का सामना करना पड़े। इसलिए हमें हमेशा सम्मानपूर्वक विचार करना चाहिए कि क्या हम उस स्थिति में से गुजर सकेंगे या नहीं, और उसके बाद ही अपने सामर्थ्य के अनुसार चुनाव करना चाहिए।


16 .मीरा बहन और बाघ

Short Hindi Story with Moral


मीरा बहन का जन्म इंग्लैंड में हुआ था। गांधी जी के विचारों का उन पर इतना असर हुआ कि वे अपना घर और अपने माता-पिता को छोड़कर भारत आ गईं और गांधी जी के साथ काम करने लगीं। आज़ादी के पाँच साल बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के एक पहाड़ी गाँव, गेंवली में गोपाल आश्रम की स्थापना की। उस आश्रम में मीरा बहन का बहुत सारा समय पालतू पशुओं की देखभाल में बीतता था लेकिन गेंवली गाँव के आसपास के जंगलों में बाघ जैसे खतरनाक जानवर भी रहते थे।

पहाड़ी गाँवों में अक्सर बाघ का डर बना रहता है। जंगल कटने के कारण शिकार की तलाश में बाघ कभी - कभी गाँव तक पहुँच जाता है। गेंवली गाँव में एक बार यही हुआ। एक बाघ ने गाँव में घुसकर एक

गाय को मार डाला। सुबह होते ही यह खबर पूरे गाँव में फैल गई। गाँव के लोग डरे कि यह बाघ कहीं फिर से आकर दूसरे पालतू जानवरों और किसी आदमी को ही अपना शिकार न बना ले। गाँव के लोग गोपाल आश्रम गए और उन लोगों ने मीरा बहन को अपनी चिंता बताई।

गाँव के लोगों ने अंत में तय किया कि बाघ को कैद कर लिया जाए। उसे कैद करने के लिए उन्होंने एक पिंजड़ा बनाया। पिंजड़े के अंदर एक बकरी बाँधी । योजना यह थी कि बकरी का मिमियाना सुनकर बाघ पिंजड़े की तरफ़ आएगा। पिंजड़े का दरवाज़ा इस प्रकार खुला हुआ बनाया गया था कि बाघ के अंदर घुसते ही वह दरवाज़ा झटके से बंद हो जाए। शाम होने तक पिंजड़े को ऐसी जगह पर रख दिया गया जहाँ बाघ अक्सर दिखाई देता था। यह जगह मीरा बहन के गोपाल आश्रम से ज़्यादा दूर नहीं थी।

रात बीती । सुबह की रोशनी होते ही लोग पिंजड़ा देखने निकल पड़े। उन्होंने दूर से देखा कि पिंजड़े का दरवाज़ा बंद है। वे यह सोचकर बहुत खुश हुए कि बाघ ज़रूर पिंजड़े में फँस गया होगा

लेकिन जब वे पिंजड़े के पास पहुँचे तो क्या देखते हैं – पिंजड़े में बाघ नहीं था!

लोग चकित थे- बाघ के अंदर गए बिना पिंजड़ा बंद कैसे हो गया? लोग मीरा बहन के पास पहुँचे। लोगों ने सोचा कि गोपाल आश्रम पास में ही था, इसलिए शायद मीरा बहन को मालूम हो कि रात में क्या हुआ।

पूछने पर मीरा बहन बोलीं -देखो भाई, मुझे नींद नहीं आ रही थी । मैं सोचती रही कि आखिर बाघ को धोखा देकर हम क्यों फँसाएँ। इसलिए मैं गई और पिंजड़े का दरवाज़ा बंद कर आई।


17. कहानी की कहानी

Short Hindi Story with Moral

कहानी सुनने में हम सब को मज़ा आता है। तुम्हें घर पर कौन कहानी सुनाता है?

किसकी कहानियाँ सबसे अच्छी लगती हैं?

किसका सुनाने का तरीका सबसे मज़ेदार है? भला क्यों?

बहुत पुरानी बात है। तब भी लोग कहानियाँ सुनते और सुनाते थे राजा-रानी, परियों की कहानी, शेर और गीदड़ की कहानी। माँ-बाप, बच्चे, दादी-नानी को घेरकर बैठ जाते और बार-बार अपनी मनपसंद कहानी सुनते। बड़े होने पर वे बच्चे अपने बच्चों को कहानी सुनाते । फिर बड़े होकर बच्चे आगे अपने बच्चों को वही कहानियाँ सुनाते । इसी तरह कहानियों का यह सिलसिला आगे बढ़ता। उनके बच्चों के बच्चे, फिर उनके बच्चों के बच्चे उन कहानियों का मज़ा लेते जाते । सुनने-सुनाने से ही कई कहानियाँ आज हम तक पहुँची हैं।

कहानी सुनाने के कई अलग तरीके थे। कोई आवाज़ बदल-बदलकर सुनाता। कोई आँखें मटकाकर । कोई हाथ के इशारों से बात आगे बढ़ाता। कोई गाकर और कोई नाचकर भी कहानी को सजाता। आज भी कई लोग पुरानी कहानियों को नाच-गाकर सुनाते हैं। हर जगह नाच के ऐसे कई अलग-अलग तरीके हैं। क्या तुम्हारे इलाके में कोई ऐसा कलाकार या कहानी कहने वाला है?

पंचतंत्र की कहानियाँ सालों से लोग सुनते-सुनाते चले आ रहे थे। फिर लोगों ने सोचा क्यों न इनको लिखकर रख लें। इस तरह भूलेंगी नहीं और सँभली भी रहेंगी। ऐसी कई कहानियों को एक साथ पोथी में लिख लिया। पोथी का नाम रखा पंचतंत्र।

उस समय लोगों के पास कागज़ और किताबें तो होती नहीं थीं। सोचो, कहानियों को कैसे लिखा होगा ?

उस ज़माने में लोग पत्तों पर या पत्थर पर लिखते थे। पेड़ की छाल का भी इस्तेमाल करते थे। खजूर के बड़े पत्ते देखे हैं? उनको छाया में सुखा लेते थे। तेल से उनको नरम बनाकर फिर उन पर कहानी लिखते, पर लिखते किससे? पेंसिल और पेन तो तब थे नहीं। पक्षी के पंख सेही कलम बना लेते या बाँस को नुकीला बनाकर उससे लिखते । स्याही भी खुद घर पर बनाते थे। क्या तुमने कहीं लकड़ी की कलम देखी है?

पंचतंत्र की कहानियाँ कई सौ साल पहले लिखी गई थीं। दुनिया भर में ये कहानियाँ पसंद की जाती थीं। कई लोगों ने अपनी-अपनी भाषा में इस पोथी को लिखा था।


18 .सबसे अच्छा पेड़

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तीन भाई थे। एक दिन सुबह के समय तीनों नए घरों की तलाश में निकल पड़े। गरम-गरम धूप में वे सड़क पर चलते चले गए। थोड़ी देर में आम का एक बड़ा पेड़ आया। उसके नीचे ठंडी छाँह थी। तीनों भाई उसके नीचे आराम करने लगे।

पेड़ के पके आम तोड़-तोड़कर वे मीठा-मीठा रस चूसने लगे। बड़े भाई ने कहा भाई मुझे तो यही जगह पसंद है। आम के पेड़ से बढ़कर क्या हो सकता है? आम कच्चे होंगे. तो हम अचार बनाएँगे। और जब वे पक जाएँगे, तो हम मीठे-मीठेआम खाएँगे। कुछ आम हम बाद में खाने के लिए सुखाकर रख लेंगे।

पहले भाई ने आम के पेड़ के नीचे एक झोपड़ी बनाई और वह वहीं ठहर गया। लेकिन उसके भाई वहाँ नहीं ठहरे, वे आगे चल पड़े। चलते-चलते उन्हें केले के कुछ पेड़ मिले। तभी आसमान से एक काला बादल गुज़रा।

टप-टप....... पानी बरसने लगा। दोनों भाइयों ने केले का एक-एक पत्ता काट लिया, उसके साए में उन पर पानी नहीं गिरा । जरा देर में बादल चला गया। बारिश रुक गई।

दूसरे भाई ने कहा बड़ी भूख लगी है।

मुझे भी – तीसरे भाई ने कहा। दोनों ने केले का एक पत्ता चीरा, उन्होंने एक-एक टुकड़े पर खाना परोसा और दोनों ने भरपेट खाना खाया। इसके बाद एक-एक केला भी खाया।

दूसरे भाई ने कहा - मैं तो यहीं घर बनाऊँगा । केले के पेड़ से अच्छा क्या होगा, बढ़िया केले खाने को मिलेंगे। उनकी सब्ज़ी बनाएँगे। कुछ केले हम बेच देंगे। उनके पैसे से हम चावल खरीद लेंगे और केले के पत्ते भी काम आएँगे।

इसीलिए दूसरे भाई ने वहीं अपनी झोंपड़ी बना ली।

मगर तीसरा भाई आगे बढ़ता चला गया। चलते-चलते उसे नारियल का एक पेड़ मिला। पेड़ बड़ा लंबा और पतला था। तीसरे भाई ने कहा- प्यास लगी है!

कैसी

टप... एक नारियल ज़मीन पर टपक पड़ा। तीसरे भाई ने अपना चाकू निकाला। खर- खर.. नारियल की जटाएँ साफ़ हो गई। फिर उसने नारियल के छिलके में छोटा-सा छेद किया और उसका ठंडा-मीठा पानी पीया । नारियल के पेड़ की छोटी-सी छाँह ! तीसरा भाई उसी छाँह में बैठ गया और सोचने लगा

आम का पेड़ बहुत बढ़िया होता है और आम भी बड़ा अच्छा फल है। केले का पेड़ बड़े काम का होता है और केला खाने में अच्छा होता है।

पेड़ नीम का भी अच्छा है। उसकी दातुन बड़ी अच्छी रहती है। घर में कोई बीमार हो, तो लोग नीम की टहनियाँ दरवाज़े पर लटका देते हैं।

मेरे पास नीम का पेड़ हो, तो मैं उसकी टहनियाँ बेच सकता हूँ और पेड़ मुझे ठंडी छाँह भी देगा और अगर कहीं मेरे पास रबड़ का पेड़ होता, तो मैं अपना चाकू निकाल कर पेड़ की छाल में एक लंबा चीरा लगा देता। चीरे के तले में एक प्याला रख देता। पेड़ के दूधिया रस को मैं प्याले में भर लेता। रस को पकाकर मैं रबड़ बना लेता । रबड़ मैं बेच देता । रबड़ से लोग गुब्बारे, टायर और तरह-तरह की चीजें बना लेते। अच्छे पेड़ों की क्या कमी है ! नारियल के पेड़ की ही सोचो। नारियल की जटाओं को काटकर मैं मोटी डोरियाँ बना सकता हूँ और डोरियों से मैं मज़बूत चटाइयाँ भी बना सकता हूँ। रस्सियों और चटाइयों को मैं शहर के बाज़ार में बेच सकता हूँ। मैं नारियल का पानी पी सकता हूँ। मैं नारियल की गरी खा सकता हूँ और कुछ गरी सुखाकर मैं खोपरा भी तैयार कर सकता हूँ, खोपरे को पेरकर मैं गोले का तेल निकाल सकता हूँ। गोले का तेल साबुन और कितनी ही चीज़ें बनाने के काम आता है। नारियल के छिलके को साफ़ करके कटोरे और प्याले बना सकता हूँ। ठीक तो है, मेरे लिए तो यही पेड़ सबसे अच्छा है। मैं तो इसी के नीचे घर बनाऊँगा ।

इसलिए तीसरे भाई ने नारियल के तले अपनी कुटिया बनाई और मज़े से रहने लगा।

तुम्हारे लिए कौन - सा पेड़ सबसे अच्छा है?


19. जैसा सवाल वैसा जवाब

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बादशाह अकबर अपने मंत्री बीरबल को बहुत पसंद करता था। बीरबल की बुद्धि के आगे बड़े-बड़ों की भी कुछ नहीं चल पाती थी। इसी कारण कुछ दरबारी बीरबल से जलते थे। वे बीरबल को मुसीबत में फँसाने के तरीके सोचते रहते थे।

अकबर के एक खास दरबारी ख्वाजा सरा को अपनी विद्या और बुद्धि पर बहुत अभिमान था । बीरबल को तो वे अपने सामने निरा बालक और मूर्ख समझते थे। लेकिन अपने ही मानने से तो कुछ होता नहीं! दरबार में बीरबल की ही तूती बोलती और ख्वाजा साहब की बात ऐसी लगती थी जैसे नक्कारखाने में तृती की आवाज़ । ख्वाजा साहब की चलती तो वे बीरबल को हिंदुस्तान से निकलवा देते लेकिन निकलवाते कैसे!

एक दिन ख्वाजा ने बीरबल को मूर्ख साबित करने के लिए बहुत सोच-विचार कर कुछ मुश्किल प्रश्न सोच लिए। उन्हें विश्वास था कि बादशाह के उन प्रश्नों को सुनकर बीरबल के छक्के छूट जाएँगे और वह लाख कोशिश करके भी संतोषजनक उत्तर नहीं दे पाएगा। फिर बादशाह मान लेगा कि ख्वाजा सरा के आगे बीरबल कुछ नहीं है।

ख्वाजा साहब अचकन-पगड़ी पहनकर दाढ़ी सहलाते हुए अकबर के पास पहुँचे और सिर झुकाकर बोले, “बीरबल बड़ा बुद्धिमान बनता है। आप भी उसकी लंबी-चौड़ी बातों के धोखे में आ जाते हैं। मैं चाहता हूँ कि आप मेरे तीन सवालों के जवाब पूछकर उसके दिमाग की गहराई नाप लें। उस नकली अक्ल- बहादुर की कलई खुल जाएगी।"

ख्वाजा के अनुरोध करने पर अकबर ने बीरबल को बुलाया और उनसे कहा, “बीरबल! परम ज्ञानी ख्वाजा साहब तुमसे तीन प्रश्न पूछना चाहते हैं। क्या तुम उनके उत्तर दे सकोगे?"

बीरबल बोले, “जहाँपनाह! ज़रूर दूँगा । खुशी से पूछें। "

ख्वाजा साहब ने अपने तीनों सवाल लिखकर बादशाह को दे दिए। अकबर ने बीरबल से ख्वाजा का पहला प्रश्न पूछा, “संसार का केंद्र कहाँ है?"

बीरबल ने तुरंत ज़मीन पर अपनी छड़ी गाड़कर उत्तर दिया, "यही स्थान चारों ओर से दुनिया के बीचों-बीच पड़ता है। यदि ख्वाजा साहब को विश्वास न हो तो वे फीते से सारी दुनिया को नापकर दिखा दें कि मेरी बात गलत है। "

अकबर ने दूसरा प्रश्न किया, आकाश में कितने तारे हैं?"

बीरबल ने एक भेड़ मँगवाकर कहा, "इस भेड़ के शरीर में जितने बाल हैं, उतने ही तारे आसमान में

हैं। ख्वाजा साहब को इसमें संदेह हो तो वे बालों को गिनकर तारों की संख्या से तुलना कर लें। "

अब अकबर ने तीसरा सवाल किया, “संसार की आबादी कितनी है?"

बीरबल ने कहा, “जहाँपनाह! संसार की आबादी पल-पल पर घटती-बढ़ती रहती है क्योंकि हर पल लोगों का मरना- जीना लगा ही रहता है। इसलिए यदि सभी लोगों को एक जगह इकट्ठा किया जाए तभी उनको गिनकर ठीक-ठीक संख्या बताई जा सकती है।"

बादशाह तो बीरबल के उत्तरों से संतुष्ट हो गया लेकिन ख्वाजा साहब नाक-भौंह सिकोड़कर बोले, “ऐसे गोलमोल जवाबों से काम नहीं चलेगा जनाब ! '

बीरबल बोले, "ऐसे सवालों के ऐसे ही जवाब होते हैं।

पहले मेरे जवाबों को गलत साबित कीजिए, तब आगे बढ़िए।" ख्वाजा साहब से फिर कुछ बोलते नहीं

बना।


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20. नटखट चूहा

Short Hindi Story with Moral

बच्चो, एक था चूहा। बहुत ही नटखट और बड़ा ही चालाक। कुछ न कुछ शरारत करने का उसका हमेशा मन करता रहता था।

एक दिन उसने अपने दिल में सोचा - आज मैं शहर जाऊँगा। बारिश के कारण बिल से बाहर निकले बहुत दिन बीत गए हैं। घर में बैठे-बैठे दिल घबरा गया है।

नटखट चूहा झटपट तैयार होकर शहर की ओर निकल पड़ा। वह मस्ती से झूमता हुआ चला जा रहा था कि रास्ते में उसे एक बड़ी-सी कपड़े की दुकान दिखाई दी। दुकानदार अपनी दुकान खोलकर अंदर जा ही रहा था कि नटखट चूहा भी चुपचाप उसके पीछे अंदर चला गया। जैसे ही दुकानदार अपनी जगह पर बैठा, उसकी नज़र चूहे पर पड़ी ।

दुकानदार ने कहा- अरे, तू मेरी दुकान में क्या कर रहा है?चल भाग यहाँ से।

चूहा बोला- मैं अपनी टोपी के लिए कुछ कपड़ा खरीदने आया हूँ।

दुकानदार हँसा - हा हा! हट यहाँ से मैं चूहों को कुछ नहीं बेचता ।

चूहा गुस्से में बोला- तुम मुझे कपड़ा नहीं बेचोगे ? दुकानदार बोला - भाग यहाँ से । बेकार मेरा समय बर्बाद न कर।

चूहा चिल्लाया- तुम मुझे कपड़ा देते हो या नहीं? दुकानदार बोला- नहीं, बिल्कुल नहीं। इस बार नटखट चूहे ने गाना गाया रातों रात मैं आऊँगा अपनी सेना लाऊँगा तेरे कपड़े कुतरूँगा दुकानदार डर कर बोला-

चूहे भैया, ऐसा न करना, मैं अभी तुम्हें रेशमी कपड़े का टुकड़ा देता हूँ।

और उसने चूहे को रेशमी कपड़े का टुकड़ा दे दिया। कपड़ा लेकर चूहा उछलता - कूदता दुकान से बाहर निकल गया। फिर वह एक दर्जी की दुकान में आ पहुँचा। चूहे ने कहा- दर्ज़ी जी, मुझे तुमसे कुछ काम है। काम! क्या काम?– दर्जी ने गुस्से से पूछा।

चूहे ने दर्ज़ी को रेशमी कपड़ा दिया और कहा- कृपया इस कपड़े की एक अच्छी टोपी सिल दो।

दर्ज़ी हँसा। चल हट यहाँ से, मेरा समय खराब न कर। मेरे पास तेरा काम करने का समय नहीं है- दर्ज़ी ने कहा । अब चूहे को गुस्सा आ गया। वह ज़ोर से चिल्लाया- तुम मेरी टोपी सिलोगे या नहीं? नहीं, नहीं, नहीं- दर्जी ने कहा ।

तो ठीक है - चूहा बोला और गाने लगा

रातों रात मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

तेरे कपड़े कुतरूँगा

चूहे भैया, ऐसा न करना, दर्जी ने कहा- चूहे भैया, अभी तुम्हारी टोपी बनाता हूँ।

और थोड़ी ही देर में दर्ज़ी ने के लिए एक सुंदर - सी रेशमी टोपी तैयार कर दी। नटखट चूहे ने उसे पहना और फिर अपना चेहरा आइने में देखा। यह टोपी तो एकदम सादी है। मैं इस पर चमकीले सितारे लगवाऊँगा - चूहे ने सोचा ।

वह कूदता - फाँदता दुकान से बाहर निकल गया। वह सड़क पर शान से चल रहा था कि उसकी नज़र एक छोटी-सी दुकान पर पड़ी जहाँ सुनहरे और रूपहले सितारे बिक रहे थे। अंदर जा कर वह इधर-उधर उछलने-कूदने लगा।

दुकानदार ने कहा- अरे चल यहाँ से । तू यहाँ क्या करने आया है?

चूहे ने कहा- मैं अपनी टोपी के सुनहरे और रूपहले सितारे खरीदने आया हूँ।

दुकानदार ने कहा- ने कहा— भाग यहाँ से । मुझे बेवकूफ़ बनाने की कोशिश न कर। एक चूहे को सितारों से क्या मतलब? तुम मुझे सितारे बेचोगे या नहीं? - चूहे ने गुस्से से पूछा। नहीं, नहीं, नहीं, मैं तुम्हें सितारे नहीं बेचूँगा- दुकानदार ने कहा।

फिर चूहे ने उत्तर दिया- रातों रात मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

सारे सितारे बिखेरूँगा

दुकानदार ने कहा- कहा- चूहे भैया, ऐसा न करना । मैं तुम्हारी टोपी के लिए रंग-बिरंगे सितारे दे दूँगा और यही नहीं, उन्हें तुम्हारी टोपी में टाँक भी दूँगा ।

अच्छा, तो ज़रा जल्दी करो - चूहे ने कहा ।

टोपी बनकर तैयार हो गई। चूहा टोपी पहनकर आइने के सामने खड़ा हुआ तो खुशी से उसका मन नाच उठा। वह सोचने लगा- मैं भी किसी राजा से कम नहीं हूँ। मैं अपनी सुंदर टोपी किसे दिखाऊँ ? चलो अपनी चमकीली टोपी राजा को ही दिखाता हूँ।

एक घंटे के अंदर ही नटखट चूहा राजमहल में राजा के पास आ पहुँचा।

वह राजा के सामने जा खड़ा हुआ। राजा अचानक चूहे को देख कर बहुत हैरान हुआ। पूछा – अरे, तुम यहाँ क्या कर रहे हो?

चूहे ने कहा- महाराज, पहले यह बताइए कि मैं इस टोपी में कैसा लग रहा हूँ।

राजा ने जवाब दिया- वाह, तुम तो एकदम राजकुमार लग रहे हो।

चूहा झटपट बोला- अच्छा, तो फिर उतरो गद्दी से । यहाँ मैं बैठँगा।

राजा को हँसी आ गई। उसने कहा - भाग यहाँ से। मेरा सिंहासन चूहों के लिए नहीं है। केवल एक राजा ही इस पर बैठ सकता है।

चूहे ने पूछा- तो क्या तुम मुझे अपनी गद्दी नहीं दोगे ? बिल्कुल नहीं। मैं तुम्हें अपना सिंहासन नहीं दूँगा - राजा ने उत्तर दिया।

तो तुम नहीं उतरोगे? - चूहे ने फिर से पूछा । नहीं, नहीं - राजा अपनी बात पर अड़ा रहा। राजा ने आदेश दिया- पकड़ लो इस चूहे को सिपाही पकड़ने दौड़े।

चूहा सरपट उनके बीच से निकल गया और सिपाही एक के ऊपर एक गिर पड़े।

अब चूहे ने अपनी कमर पर हाथ रखकर कहा- रातों रात मैं आऊँगा

अपनी सेना लाऊँगा

तेरे कान कुतरूँगा

राजा ने सोचा, चूहों की फ़ौज तो पूरे महल तहस-नहस कर देगी। वह डर से काँपने लगा। चूहे ने फिर कहा- रातों रात मैं आऊँगा अपनी सेना लाऊँगा तेरे कान कुतरूँगा

राजा डर से काँपने लगा। काँपती आवाज़ में उसने कहा- चूहे भैया, तुम बेकार में नाराज़ हो रहे हो। मैं अपनी गद्दी से अभी उतरता हूँ और तुम शौक से जितनी देर चाहो इस पर बैठ सकते हो।

चूहा बहुत खुश हुआ। शान से, वह सिंहासन पर बैठ गया और काफ़ी देर तक वहाँ आराम करता रहा। रात जब

काफ़ी बीत गई, वह गद्दी से कूदकर नीचे आया और खुशी-खुशी अपने घर को चल दिया।

उसने शान से अपनी चमकीली टोपी अपने सभी साथियों को दिखाई। सभी दोस्त उसकी कहानी सुनना चाहते थे।


21. एक्की दोक्की

Short Hindi Story with Moral

दो बहनें थीं। एक का नाम था एककेसवाली और दूसरी का नाम था दोनकेसवाली। दोनों बहनें अपने अम्मा और बाबा के साथ एक छोटे से घर में रहती थीं।

एककेसवाली का एक ही बाल था इसलिए सब उसे एक्की बुलाते थे। दोनकेसवाली बड़ी घमंडी थी। उसके दो बाल थे इसलिए सब उसे दोक्की बुलाते थे।

अम्मा सोचती थी कि दोक्की जैसी सुंदर लड़की तो दुनिया में है ही नहीं। और बाबा- उनको सोचने की फ़ुरसत ही कहाँ! काम में जो उलझे रहते थे।

दोक्की हमेशा अपनी बहन पर रौब जमाती रहती। एक दिन एक्की घने जंगल में गई। चलते-चलते वह घने जंगल के बीच आ पहुँची। चारों तरफ़ सन्नाटा था। अचानक उसने एक आवाज़ सुनी- पानी! मुझे प्यास लगी है! कोई पानी पिला दो!

एक्की रुकी और उसने चारों तरफ़ घूमकर देखा। वहाँ तो कोई नहीं था। फिर उसने देखा, सूखी, मुरझाई हुई मेहँदी की एक झाड़ी, जिसके पत्ते सरसरा रहे थे।

पास में ही पानी की धारा बह रही थी। एक्की ने चुल्लू में पानी भरकर एक बार, दो बार, कई बार झाड़ी के ऊपर डाला।

मेहँदी की झाड़ी बोली- धन्यवाद एक्की ! मैं तुम्हारी ये मदद याद रखूँगी।

एक्की आगे बढ़ गई।

फिर अचानक सन्नाटे में उसे एक और आवाज़ सुनाई दी- मुझे भूख लगी है! कोई मुझे खाना खिला दो! एक्की ने देखा कि एक मरियल सी गाय पेड़ से बँधी हुई थी।

एक्की ने घास-फूस इकट्ठी की और गाय को खिला दी। उसके बाद उसने गाय के गले में बँधी रस्सी को खोल दिया।

धन्यवाद एक्की! मैं तुम्हारी ये मदद हमेशा याद रखूँगी- गाय ने कहा।

एक्की अब चलते-चलते थक गई थी। उसे गर्मी भी लग रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करे? कहाँ जाए?

तभी उसे दूर एक झोंपड़ी दिखाई दी। एक्की दौड़कर झोंपड़ी तक गई और आवाज़ लगाई- कोई है ? एक बूढ़ी अम्मा ने दरवाज़ा खोला।

बूढ़ी अम्मा ने कहा- आहा! आ गई मेरी बच्ची ? मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी। आओ, अंदर आ जाओ। एक्की हैरान हो गई और चुपचाप झोंपड़ी में आ गई। झोंपड़ी में आकर उसे बहुत अच्छा लगा।

बूढ़ी अम्मा ने कहा- आओ बेटी, तुम्हारे लिए नहाने का पानी तैयार है। पहले अच्छी तरह से तेल लगाओ और उसके बाद नहा लो। फिर हम खाना खाएँगे।

एक्की ने शरमाते हुए कहा- नहीं! नहीं!

अम्मा ने पुचकार कर कहा- अरे नहीं क्या! जैसा मैं कहती हूँ वैसा करो ।

एक्की ने बूढ़ी अम्मा की बात मान ली।

फिर पता है क्या हुआ?

एक्की ने जैसे ही अपने सिर से तौलिया हटाया तो उसने पाया कि उसके सिर पर एक नहीं परंतु बहुत सारे बाल थे। एक्की इतनी खुश हुई कि वह खाना खा ही नहीं सकी । बस, बार-बार वह बूढ़ी अम्मा का धन्यवाद ही करती रही !बूढ़ी अम्मा ने मुस्कुराते हुए कहा- अब तुम घर जाओ बेटी और हमेशा खुश रहो।

एक्की के तो जैसे पंख ही निकल आए। वह सरपट घर की तरफ़ दौड़ चली। रास्ते में उसे गाय ने मीठा-मीठा दूध दिया और झाड़ी ने हाथों पर रचाने के लिए मेहँदी दी। घर पहुँचकर एक्की ने सारी कहानी सुनाई।


दोक्की कहानी सुनते ही सीधे जंगल की तरफ़ भागी। दोक्की इतना तेज़ भाग रही थी कि न उसने प्यासी झाड़ी और न ही भूखी गाय की पुकार सुनी।

वह तो धड़धड़ाती हुई झोंपड़ी में घुस गई और बूढ़ी अम्मा को हुक्म दिया- मेरे लिए नहाने का पानी तैयार करो। हाँ, आओ, मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी। पानी तैयार है, नहा लो - बूढ़ी अम्मा ने दोक्की से कहा ।

झटपट नहाने के बाद जैसे ही दोक्की ने तौलिया सिर से हटाया, उसकी तो चीख निकल गई!

दोक्की के दो ही तो बाल थे और वे भी झड़ गए थे। रोते-रोते दोक्की घर की तरफ़ चलने लगी। रास्ते में उसे गाय ने सींग मारा और मेहँदी की झाड़ी ने काँटे चुभो दिए। मगर अब दोक्की अपना सबक सीख चुकी थी। इसके बाद एक्की, दोक्की अपने अम्मा-बाबा के साथ खुशी-खुशी रहने लगीं।


22.हुदहुद को कलगी कैसे मिली

Short Hindi Story

एक बार सुलेमान नाम के बादशाह आकाश में उड़ने वाले अपने उड़नखटोले पर बैठे कहीं जा रहे थे। बड़ी गर्मी थी । धूप से वह परेशान हो रहे थे। आकाश में उड़ने वाले गिद्धों से उन्होंने कहा कि अपने पंखों से तुम लोग मेरे सिर पर छाया कर दो। पर गिद्धों ने ऐसा करने से मना कर दिया। उन्होंने बहाना बनाते हुए कहा, "हम तो इतने छोटे-छोटे हैं। हमारी गर्दन पर पंख भी नहीं हैं। हम छाया कैसे कर सकते हैं! "

सुलेमान आगे बढ़ गए। कुछ दूर जाने पर उनकी भेंट हुदहुदों के मुखिया से हुई। सुलेमान ने उससे भी मदद माँगी। वह चतुर था। उसने फ़ौरन अपने दल के सभी हुदहुदों को इकट्ठा करके बादशाह सुलेमान के ऊपर छाया कर दी। सुलेमान बोले, “मैंने गिद्धों से भी मदद माँगी थी। वे मेरी मदद कर सकते थे पर उन्होंने मेरी मदद नहीं की । तुम गिद्धों से छोटे तो हो पर चतुर अधिक हो। तुम सबने मिलकर मेरी सहायता की है। मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ। मैं तुम्हारी कोई इच्छा पूरी करूँगा। बताओ, तुम्हारी क्या इच्छा है?"

मुखिया ने कहा, "महाराज, मैं अपने सभी साथियों से सलाह करने के बाद अपनी इच्छा बताऊँगा । "

मुखिया ने साथियों से सलाह करने के बाद कहा, “महाराज! यह वरदान दीजिए कि हमारे सिर पर आज से सोने की कलगी निकल आए।" बादशाह हँसे और बोले - " मुखिया, इसका फल क्या होगा, यह तुमने सोच लिया है?"

मुखिया बोला “हाँ, महाराज! मैंने खूब परामर्श करके यह वर माँगा है।" सुलेमान ने प्रार्थना स्वीकार कर ली। सभी हुदहुदों के सिर पर सोने की कलगी निकल आई। लोगों ने सोने की कलगी को देखा, तो वे हुदहुदों के पीछे पड़ गए। तीर से उन्हें मार-मारकर सोना इकट्ठा करने लगे ।

हुदहुदों का वंश समाप्त होने पर आ गया। तब मुखिया घबराकर बादशाह सुलेमान के पास पहुँचा और बोला “इस सोने की कलगी के कारण तो हमारा वंश ही समाप्त हो जाएगा।

सुलेमान ने कहा “मैंने तो शुरू में ही तुम्हें चेतावनी दी थी। खैर, जाओ, आज से तुम्हारे सिर का ताज सोने का नहीं, सुंदर परों का हुआ करेगा । " और तभी से हुदहुदों के सिर पर परों का यह ताज ( कलगी) शोभा पा रहा है।

हुदहुद एक बहुत ही सुंदर पक्षी है। क्या तुम्हें पता है, इसके शरीर का सुंदर भाग कौन-सा है ? इसके सिर की कलगी बहुत सुंदर है। वैसे तो यह इसे समेटे रहता है। पर जैसे ही किसी तरह की आवाज़ होती है, यह चौकन्ना होकर परों को फैला लेता है। तब यह कलगी देखने में हू-ब-हू किसी सुंदर पंखी जैसी लगने लगती है। इसी कलगी के बारे में तुमने अभी एक सुंदर कहानी भी पढ़ी है।

हुदहुद का सारा शरीर रंग-बिरंगा और चटकीला होता है। एक पक्षी और इतने सारे रंग! पंख काले-काले होते हैं जिन पर मोटी सफ़ेद धारियाँ बनी होती हैं। गर्दन का अगला हिस्सा बादामी रंग का होता है। चोटी भी बादामी रंग की होती है, मगर उसके सिरे काले और सफ़ेद होते हैं । दुम का भीतरी हिस्सा सफ़ेद और बाहरी हिस्सा काले रंग का होता है। चोंच पतली, लंबी तथा तीखी होती है। इस चोंच से यह आसानी से ज़मीन के भीतर छिपे हुए कीड़े मकोड़ों को ढूँढ़ निकालता है। इसकी चोंच नाखून काटने वाली 'नहरनी' से मिलती है और शायद इसीलिए कहीं-कहीं इसे 'हजामिन' चिड़िया के नाम से भी पुकारते हैं।

हुदहुद हमारे देश के सभी भागों में पाए जाते हैं।

तुमने इसे अपने घर के आसपास अपनी तीखी चोंच से ज़मीन खोदते हुए अवश्य देखा होगा। बोलते समय यह तीन बार 'हुप - हुप- हुप' सा कुछ कहता है, इसीलिए इसे अंग्रेज़ी में 'हूप ऊ' कहा जाता है। हिंदी में इसे हुदहुद कहते हैं। दूब में कीड़ा ढूँढ़ने के कारण हमारे देश में कहीं-कहीं इसे 'पदुबया' भी कहते हैं और सुंदर कलगी की वजह से कुछ देशों में लोग इसे 'शाह सुलेमान' कहकर पुकारते हैं।

मादा हुदहुद तीन से दस तक अंडे देती है। जब तक बच्चे अंडे से बाहर नहीं निकल जाते, वह अंडों पर बैठी

रहती है, हटती नहीं । नर वहीं भोजन लाकर उसे खिला जाता है । पर दोनों में से कोई भी घोंसले की सफ़ाई नहीं करता । संसार के विख्यात पक्षियों में से एक है यह हुदहुद । यह अपनी सुंदरता के लिए तो मशहूर है, पर इसे पालतू नहीं बनाया जा सकता और न ही इसकी बोली में मिठास है ।


Below are 101 very interesting stories written in Hindi. We hope you will like this Hindi story collection. Hindi short stories with moral for Kids 2023: जब कभी कहानियों का जिक्र होता है, तो बच्चों का जिक्र भी जरूर किया जाता है। यह इसलिए होता है क्योंकि कहानियां मुख्य रूप से बच्चों को ही सबसे ज्यादा पसंद होती हैं। कहानियां moral stories in hindi उनके लिए एक माध्यम हैं, जिनसे उन्हें नई प्रेरणा मिलती है और जीवन को सही तरीके से जीने का सीख मिलता है।
Short Hindi Story with Moral


23. सुनीता की पहिया कुर्सी

Hindi Short Story with Moral

सुनीता सुबह सात बजे सोकर उठी। कुछ देर तो वह अपने बिस्तर पर ही बैठी रही। वह सोच रही थी कि आज उसे क्या-क्या काम करने हैं। उसे याद आया कि आज तो बाज़ार जाना है। सोचते ही उसकी आँखों में चमक आ गई। सुनीता आज पहली बार अकेले बाज़ार जाने वाली थी।

उसने अपनी टाँगों को हाथ से पकड़ कर खींचा और उन्हें पलंग से नीचे की ओर लटकाया। फिर पलंग का सहारा लेती हुई अपनी पहिया कुर्सी तक बढ़ी। सुनीता चलने-फिरने के लिए पहिया कुर्सी की मदद लेती है। आज वह सभी काम फुर्ती से निपटाना चाहती थी। हालाँकि कपड़े बदलना, जूते पहनना आदि उसके लिए कठिन काम हैं। पर अपने रोज़ाना के काम करने के लिए उसने स्वयं ही कई तरीके ढूँढ़ निकाले हैं।

आठ बजे तक सुनीता नहा-धोकर तैयार हो गई ।

माँ ने मेज़ पर नाश्ता लगा दिया था। “माँ, अचार की बोतल पकड़ाना", सुनीता ने कहा।

“ अलमारी में रखी है। ले लो", माँ ने रसोईघर से जवाब दिया।

सुनीता खुद जाकर अचार ले आई। नाश्ता करते-करते उसने पूछा, 'माँ, बाज़ार से क्या- क्या लाना है?"

'एक किलो चीनी लानी है। पर क्या तुम अकेले सँभाल लोगी?"

'पक्का", सुनीता ने मुस्कुराते हुए कहा ।

सुनीता ने माँ से झोला और रुपए लिए। अपनी पहिया कुर्सी पर बैठकर वह बाज़ार की ओर चल दी।

सुनीता को सड़क की जिंदगी देखने में मज़ा आता है। चूँकि आज छुट्टी है इसलिए हर जगह बच्चे खेलते हुए दिखाई दे रहे हैं। सुनीता थोड़ी देर रुक कर उन्हें रस्सी कूदते, गेंद खेलते देखती रही। वह थोड़ी उदास हो गई। वह भी उन बच्चों के साथ खेलना चाहती थी। खेल के मैदान में उसे एक लड़की दिखी, जिसकी माँ उसे वापिस लेने के लिए आई थी। दोनों एक-दूसरे को टुकुर-टुकुर देखने लगे।

फिर सुनीता को एक लड़का दिखा। उस बच्चे को बहुत सारे बच्चे “छोटू-छोटू” बुलाकर चिढ़ा रहे थे। उस लड़के का कद बाकी बच्चों से बहुत छोटा था । सुनीता को यह सब बिल्कुल अच्छा नहीं लगा ।

रास्ते में कई लोग सुनीता को देखकर मुस्कुराए, जबकि वह उन्हें जानती तक नहीं थी। पहले तो वह मन ही मन खुश हुई परंतु फिर सोचने लगी, “ये सब लोग मेरी तरफ़ भला इस तरह क्यों देख रहे हैं?" खेल के मैदान वाली छोटी लड़की सुनीता को दोबारा कपड़ों की दुकान के सामने खड़ी मिली। उसकी माँ कुछ कपड़े देख रही थी।

तुम्हारे पास यह अजीब सी चीज़ क्या है?" उस लड़की ने सुनीता से पूछा।

'यह तो बस एक...,' सुनीता जवाब देने लगी परंतु उस लड़की की माँ ने गुस्से में आकर लड़की को सुनीता से दूर हटा दिया।

इस तरह का सवाल नहीं पूछना चाहिए फ़रीदा ! अच्छा नहीं लगता!" माँ ने कहा।

“मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ" सुनीता ने दुखी होकर कहा । उसे फ़रीदा की माँ का व्यवहार समझ में नहीं आया।

अंत में सुनीता बाज़ार पहुँच गई। दुकान में घुसने के लिए उसे सीढ़ियों पर चढ़ना था। उसके लिए यह कर पाना बहुत मुश्किल था । आसपास के सब लोग जल्दी में थे। किसी ने उसकी तरफ़ ध्यान नहीं दिया।

अचानक जिस लड़के को “छोटू" कहकर चिढ़ाया जा रहा था वह उसके सामने आकर खड़ा हो गया।

“मैं अमित हूँ," उसने अपना परिचय दिया, “क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद करूँ?" " मेरा नाम सुनीता है," सुनीता ने राहत की साँस ली और मुस्कुराकर बोली, “पीछे के पैडिल को पैर से ज़रा दबाओगे?"

“हाँ, हाँ, ज़रूर" कहते हुए अमित ने पहिया-कुर्सी को टेढ़ा करके उसके अगले पहियों को पहली सीढ़ी पर रखा। फिर उसने पिछले पहियों को भी ऊपर चढ़ाया। सुनीता ने अमित को धन्यवाद दिया और कहा, “अब मैं दुकान तक खुद पहुँच सकती हूँ। "

दुकान में पहुँचकर सुनीता ने एक किलो चीनी माँगी। दुकानदार उसे देखकर मुस्कुराया । चीनी की थैली पकड़ने के लिए उसने हाथ आगे बढ़ाया ही था कि दुकानदार ने थैली उसकी गोदी में रख दी। सुनीता ने गुस्से से कहा, "मैं भी दूसरों की तरह खुद अपने आप सामान ले सकती हूँ। "

उसे दुकानदार का व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। चीनी लेकर सुनीता और अमित बाहर निकले।

“लोग मेरे साथ ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि मैं कोई अजीबोगरीब लड़की हूँ ।" सुनीता ने कहा।

कारण 'शायद तुम्हारी पहिया कुर्सी के कारण ही वे ऐसा व्यवहार करते हैं। अमित ने कहा।“पर इस कुर्सी में भला ऐसी क्या खास बात है, मैं तो बचपन से ही इस पर बैठकर इसे चलाती हूँ", सुनीता ने कहा ।

अमित ने पूछा, " पर तुम इस पर क्यों बैठती हो?"

“मैं पैरों से चल ही नहीं सकती। इस पहिया कुर्सी के पहियों को घुमाकर ही मैं चल-फिर पाती हूँ लेकिन फिर भी मैं दूसरे बच्चों से अलग नहीं हूँ । मैं वे सारे काम कर सकती हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं" सुनीता ने कहा।

अमित ने अपना सिर ना में हिलाया और कहा, “मैं भी वे सारे काम कर सकता हूँ जो दूसरे बच्चे कर सकते हैं। पर मैं भी दूसरे बच्चों से अलग हूँ। इसी तरह तुम भी अलग हो । "

सुनीता ने कहा, “ नहीं ! हम दोनों दूसरे बच्चों जैसे ही हैं । ' अमित ने दोबारा अपना सिर ना में हिलाया और कहा, "देखो तुम पहिया कुर्सी पर बैठकर चलती हो । मेरा कद बहुत छोटा है। हम दोनों ही बाकी लोगों से कुछ अलग हैं।"

सुनीता कुछ सोचने लगी। उसने अपनी पहिया कुर्सी आगे की ओर खिसकाई | अमित भी उसके साथ-साथ चलने लगा।

सड़क पार करते समय सुनीता को फ़रीदा फिर नज़र आई। इस बार फ़रीदा ने कोई सवाल नहीं पूछा। अमित झट से सुनीता की पहिया कुर्सी के पीछे चढ़ गया। फिर दोनों पहिया - कुर्सी पर सवार होकर तेज़ी से सड़क पर आगे बढ़े। फ़रीदा भी उनके साथ-साथ दौड़ी। इस बार भी लोगों ने उन्हें घूरा परंतु अब सुनीता को उनकी परवाह नहीं थी।


24. स्वतंत्रता की ओर

Hindi Story with Moral

धनी को पता था कि आश्रम में कोई बड़ी योजना बन रही है, पर उसे कोई कुछ न बताता । " वे सब समझते हैं कि मैं नौ साल का हूँ इसलिए मैं बुद्ध हूँ। पर मैं बुद्ध नहीं हूँ ! " धनी मन ही मन बड़बड़ाया।

धनी और उसके माता-पिता, बड़ी खास जगह में रहते थे- अहमदाबाद के पास, महात्मा गांधी के साबरमती आश्रम में। जहाँ पूरे भारत से लोग रहने आते थे। गांधी जी की तरह वे सब भी भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे थे। जब वे आश्रम में ठहरते तो चरखों पर खादी का सूत कातते, भजन गाते और गांधी जी की बातें सुनते।

साबरमती में सबको कोई न कोई काम करना होता– खाना पकाना, बर्तन धोना, कपड़े धोना, कुएँ से पानी लाना, गाय और बकरियों का दूध दुहना और सब्जी उगाना। धनी का काम था बिन्नी की देखभाल करना । बिन्नी, आश्रम की एक बकरी थी। धनी को अपना काम पसंद था, क्योंकि बिन्नी उसकी सबसे अच्छी दोस्त थी । धनी को उससे बातें करना अच्छा लगता था।

उस दिन सुबह, धनी बिन्नी को हरी घास खिला कर, उसके बर्तन में पानी डालते हुए बोला, "कोई बात ज़रूर है बिन्नी ! वे सब गांधी जी के कमरे में बैठकर बातें करते हैं। कोई योजना बनाई जा रही है। मैं सब समझता हूँ। "

बिन्नी ने घास चबाते हुए सिर हिलाया, जैसे कि वह धनी की बात समझ रही हो । धनी को भूख लगी । कूदती - फाँदती बिन्नी कूदती-फाँदती को लेकर वह रसोईघर की तरफ़ चला। उसकी माँ चूल्हा फूँक रही थीं और कमरे धुआँ भर रहा था।

'अम्मा, क्या गांधी जी कहीं जा रहे हैं?" उसने पूछा।

माँ बोलीं, “ वे सब यात्रा पर

'यात्रा ? कहाँ जा रहे हैं?" धनी ने सवाल किया। "समुद्र के पास कहीं। अब सवाल पूछना बंद करो और जाओ यहाँ से धनी!" अम्मा ज़रा गुस्से से बोलीं, 'पहले मुझे खाना पकाने दो। "

सब्ज़ी की क्यारियों की तरफ़ निकल गया जहाँ बूढ़ा बिंदा आलू खोद रहा था । " बिंदा चाचा, " धनी उनके पास बैठ गया, “आप भी यात्रा पर जा रहे हैं क्या ?" बिंदा ने सिर हिलाकर मना किया। उसके कुछ बोलने से पहले धनी ने उतावले होकर पूछा, “कौन जा रहे हैं? कहाँ जा रहे हैं? क्या हो रहा है?"

बिंदा ने खोदना रोक दिया और कहा, "तुम्हारे सब सवालों के जवाब दूँगा पर पहले इस बकरी को बाँधो ! मेरा सारा पालक चबा रही है ! "

धनी बिन्नी को खींच कर ले गया और पास के नींबू के पेड़ से बाँध दिया। फिर बिंदा ने उसे यात्रा के बारे में बताया। गांधी जी और उनके कुछ साथी गुजरात में पैदल चलते हुए, दांडी नाम की जगह पर समुद्र के पास पहुँचेंगे। गाँवों और शहरों से होते हुए पूरा महीना चलेंगे। दाँडी पहुँच कर वे नमक बनाएँगे।

"नमक?" धनी चौंक कर उठ बैठा, "नमक क्यों बनाएँगे? वह तो किसी भी दुकान से खरीदा जा सकता है।"

“हाँ, मुझे मालूम है । " बिंदा हँसा," पर महात्मा जी की एक योजना है। यह तो तुम्हें पता ही है कि वह किसी बात के विरोध में ही यात्रा करते हैं या जुलूस निकालते हैं, है न?"

“हाँ, बिल्कुल सही। मैं जानता हूँ। वे ब्रिटिश सरकार के खिलाफ़ सत्याग्रह के जुलूस निकालते हैं जिससे कि उनके खिलाफ़ लड़ सकें और भारत स्वतंत्र हो जाए। पर नमक को लेकर विरोध क्यों कर रहे हैं? यह तो समझदारी वाली बात नहीं है । "

"'अच्छा। " धनी हैरान रह गया ।

नमक की ज़रूरत सभी को है... इसका मतलब है कि हर भारतवासी, गरीब से गरीब भी.यह कर देता है, बिंदा चाचा ने आगे समझाया।

“लेकिन यह तो सरासर अन्याय है!” धन की आँखों में गुस्सा था।

“हाँ, यह अन्याय है। इतना ही नहीं. भारतीय लोगों को नमक बनाने की मनाही है। महात्मा जी ने ब्रिटिश सरकार को कर हटाने को कहा पर उन्होंने यह बात ठुकरा दी। इसलिए उन्होंने निश्चय किया है कि वे दांडी चल कर जाएँगे और समुद्र के पानी से नमक बनाएँगे।"

" एक महीने तक पैदल चलेंगे!" धनी सोच कर परेशान हो रहा था। " गांधी जी तो थक जाएँगे। वे दांडी बस या ट्रेन से क्यों नहीं जा सकते?"

क्योंकि, यदि वे इस लंबी यात्रा पर दांडी तक पैदल जाएँगे तो यह खबर फैलेगी । अखबारों में फ़ोटो छपेंगी, रेडियो पर रिपोर्ट जाएगी ! और पूरी दुनिया के लोग यह जान जाएँगे कि हम अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे हैं। और ब्रिटिश सरकार के लिए यह बड़ी शर्म की बात होगी । "

" गांधी जी, बड़े ही अक्लमंद हैं, हैं न?" धनी की आँखें चमकीं ।

बिंदा ने हँसकर कहा, "हाँ, वह तो हैं ही। "

दोपहर को जब आश्रम में थोड़ी शांति छाई, धनी अपने पिता को ढूँढ़ने निकला । वह एक पेड़ के नीचे बैठकर चरखा कात रहे थे।

“पिता जी, क्या आप और अम्मा दांडी यात्रा पर जा रहे हैं?" धनी ने सीधे काम की बात पूछी।

“मैं जा रहा हूँ। तुम और अम्मा यहीं रहोगे ।"

“मैं भी आपके साथ चल रहा हूँ। " "बेकार की बात मत करो धनी! तुम इतना लंबा नहीं चल पाओगे। आश्रम के नौजवान ही जा रहे हैं। "

धनी ने हठ पकड़ ली, “मैं नौ साल का हूँ और आपसे तेज़ दौड़ सकता हूँ ।"

धनी के पिता ने चरखा रोक कर बड़े धीरज से समझाया, “ सिर्फ़ वे लोग जाएँगे जिन्हें महात्मा जी ने खुद चुना है । " है।"

"ठीक है! मैं उन्हीं से बात करूँगा । वह ज़रूर हाँ कहेंगे ! " धनी खड़े होकर बोला और वहाँ से चल दिया।

गांधी जी बड़े व्यस्त रहते थे। उन्हें अकेले पकड़ पाना आसान नहीं था । पर धनी को वह समय मालूम था जब उन्हें बात सुनने का समय होगा - रोज़ सुबह, वह आश्रम में पैदल घूमते थे ।

अगले दिन जैसे ही सूरज निकला, धनी बिस्तर छोड़कर गांधी जी को ढूँढ़ने निकला। वे गौशाला में गायों को देख रहे थे। फिर वह सब्ज़ी के बगीचे में मटर और बंदगोभी देखते हुए बिंदा से बात करने लगे। धनी और बिन्नी लगातार उनके पीछे-पीछे चल रहे थे। अंत में, गांधी जी अपनी झोंपड़ी की ओर चले । बरामदे में चरखे के पास बैठ कर उन्होंने पुकारा, “यहाँ आओ, बेटा!"

धन दौड़कर उनके पास पहुँचा। बिन्नी भी साथ में कूदती हुई आई। 'तुम्हारा क्या नाम है, बेटा?"

“धनी, बापू । "

और यह तुम्हारी बकरी है?"

" जी हाँ, यह मेरी दोस्त बिन्नी है, जिसका दूध आप सुबह पीते हैं", धनी गर्व से मुस्कराया, “मैं इसकी देखभाल करता हूँ। "

'बहुत अच्छा! " गांधी जी ने हाथ हिलाकर कहा, अब यह बताओ धनी कि तुम और बिन्नी और बिन्नी सुबह से मेरे पीछे क्यों घूम रहे हो?"

“मैं आपसे कुछ पूछना चाहता था", धनी थोड़ा घबराया। क्या मैं आपके साथ दांडी चल सकता हूँ?" हिम्मत करके उसने कह डाला।

गांधी जी मुस्कुराए, “तुम अभी छोटे हो बेटा! दांडी तो बहुत दूर है! सिर्फ तुम्हारे पिता जैसे नौजवान ही मेरे साथ चल पाएँगे।'

“पर आप तो नौजवान नहीं हैं", धनी बोला, “आप नहीं थक जाएँगे?"

"मैं बहुत अच्छे से चलता हूँ", गांधी जी ने कहा।

" मैं भी बहुत अच्छे से चलता हूँ", धनी भी अड़ गया।

“हाँ, ठीक बात है", कुछ सोचकर गांधी जी बोले, “मगर एक समस्या है। अगर तुम मेरे साथ जाओगे तो बिन्नी को कौन देखेगा? इतना चलने के बाद, मैं तो कमज़ोर हो जाऊँगा । इसलिए, जब मैं वापस आऊँगा तो मुझे खूब सारा दूध पीना पड़ेगा, जिससे कि मेरी ताकत लौट आए।

“हूँ... यह बात तो ठीक है, बिन्नी तभी खाती है, जब मैं उसे खिलाता हूँ", धनी ने प्यार से बिन्नी का सिर सहलाया, “और सिर्फ़ मैं जानता हूँ कि इसे क्या पसंद है।"

" बिल्कुल सही । तो क्या तुम आश्रम में रहकर मेरे लिए बिन्नी की देखभाल करोगे?" गांधी जी प्यार से बोले ।

“जी, हाँ, करूँगा", धनी बोला, "बिन्नी और मैं आपका इंतज़ार करेंगे।"


लकड़हारा और सुनहरी कुल्हाड़ी की कहानी :  Hindi Short Stories
लकड़हारा और सुनहरी कुल्हाड़ी की कहानी : Hindi Short Stories

25.लकड़हारा और सुनहरी कुल्हाड़ी की कहानी :

Hindi Short Stories


एक जंगल में रहने वाला लकड़हारा, जो लकड़ी इकट्ठा करके उसे बाज़ार में बेचकर कुछ पैसे कमाता था।


एक दिन, जब वह पेड़ काट रहा था, उसकी कुल्हाड़ी गलती से नदी में गिर गई। नदी बहुत गहरी थी और जल तेजी से बह रहा था। वह पूरी कोशिश करके अपनी कुल्हाड़ी को ढूंढ़ने का प्रयास किया, लेकिन वहां नहीं मिली। उसे अनुभव हुआ कि उसकी कुल्हाड़ी खो गई है, और उसके दुखी होकर वह नदी किनारे बैठकर रोने लगा।


लकड़हारे के रोने की आवाज सुनकर नदी के देवता जाग उठे और उन्होंने उससे पूछा कि क्या हुआ है। लकड़हारा ने अपनी दुखद कहानी सुनाई। नदी के देवता को उस लकड़हारे पर दया आई और वे उसकी मेहनत और सत्यता को देखकर उसकी मदद करने का प्रस्ताव दिया।


नदी में गायब होकर, देवता ने एक सुनहरी कुल्हाड़ी लायी, लेकिन लकड़हारा ने कहा कि यह उसकी कुल्हाड़ी नहीं है।


नदी के देवता ने फिर से गायब होकर इस बार वह एक चांदी की कुल्हाड़ी लेकर वापस आए, लेकिन लकड़हारा ने फिर भी कहा कि यह कुल्हाड़ी उसकी नहीं है।


तब नदी के देवता ने फिर से पानी में गायब हो जाकर इस बार वह एक लोहे की कुल्हाड़ी लेकर लौटे - लकड़हारा ने खुशी से मुस्कान देते हुए कहा कि यह उसकी कुल्हाड़ी है।


नदी के देवता लकड़हारे की ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से प्रभावित हो गए और उसे सोने और चांदी की दोनों कुल्हाड़ियों का उपहार दिया।


इस कहानी से हमें यह सबक मिलता है कि ईमानदारी, सत्यनिष्ठा और दूसरों के साथ सहयोग करने की क्षमता हमें आपकी पहचान के रूप में मदद कर सकती है।


Short Moral Stories in Hindi
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26. चींटी और कबूतर

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गर्मी का दिन था, एक चींटीपानी की तलाश कर रही थी। कुछ देर घूमने के बाद वह एक झरने के पास पहुंची। झरने तक पहुँचने के लिए, उसे घास के एक तिनके पर चढ़ना पड़ा। उसके बाद वह पानी पीने के लिए ऊपर की ओर जाने लगी, ऊपर जाने के दौरान वह फिसल गई और पानी में गिर गई।


पास के ही एक पेड़ पर कबूतर बैठा था और उसने डूबती हुई चींटी को देख लिया था, यह देखकर कि चींटी मुसीबत में है, कबूतर ने झट से एक पत्ता 🍀तोड़ लिया और जूझती हुई चींटी के पास पानी में गिरा दिया। चींटी पत्ते की ओर बढ़ी और उसपर चढ़ गई। उसके बाद चींटी पत्ते के सहारे सुखी जमीन पर आ गयी।



ठीक उसी समय, पास में एक शिकारी उसी कबूतर को फंसाने के लिए अपना जाल 🕸️ उसकी ओर फेक रहा था। उसी समय चींटी ने जल्दी से शिकारी के पैर पर काट लिया। दर्द के कारण शिकारी ने अपना जाल नीचे गिरा दिया और कबूतर तुरंत वहां से उड़ गया।


सीख – Moral

अगर आप दूसरों की मदद करते हैं तो आपका मदद भी कोई न कोई जरूर करता है। लेकिन सिर्फ इस ख्याल से किसी कि मदद न करें की आपको भी मदद मिलेगा इसलिए सहायता कर देता हूँ, ऐसा न करें। मदद करने के लिए साफ़ नियत रखें।


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27. चालाक भेड़िया :

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एक बार की बात है, एक भूरे बालों वाला पतला भेड़िया🦊रहता था।


वह भेड़िया भेड़ों को खाना चाहता था लेकिन चरवाहों की निगरानी के कारण उसे भरपेट भोजन नहीं मिल रहा था। चरवाहे बहुत सतर्क रहते थे और भेड़िये को कभी अपने भेड़ों पर आक्रमण का मौका नहीं देते थे।


सौभाग्य से, एक रात उस भेड़िया को एक भेड़ की खाल मिली जिसे किसी ने वहीँ फेंकर भूल गया था। भेड़ की खाल को देखकर भेड़िया को एक तरकीब सुझा।


अगले दिन भेड़ की खाल पहने हुए भेड़िया भेड़ों के साथ झुंड में चला गया।


चरवाहा खेत में बैठा था। भेड़ की खाल पहने भेड़िये ने भेड़ों के झुंड का पीछा किया लेकिन उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया।


भेड़िया आसानी से भेड़ों के बीच घुलमिल गया। कुछ दिनों बाद चरवाहे ने देखा कि उसके भेड़ों की झुण्ड में कुछ ही भेड़ें बची हैं और कई भेड़ गायब है लेकिन एक भेड़ मोटी हो गई है और वही भेड़िया था।


जब चरवाहा ने ठीक से मोटी भेड़ को देखा तो भेड़ की खाल के नीचे भेड़िये को पाया। चरवाहा समझ गया की मेरे सभी भेड़ को यह भेड़िया ही मारके खा गया है, उसने चाकू लिया और भेड़िये को मार डाला।


सीख – Moral


दुष्ट व्यक्ति अक्सर अपने ही छल से खुद भी फस जाता है।


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28.भक्त माधव दास जी

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उड़ीसा प्रान्त में जगन्नाथ पूरी में एक भक्त रहते थे, श्री माधव दास जी अकेले रहते थे, कोई संसार से इनका लेना देना नही। अकेले बैठे बैठे भजन किया करते थे, नित्य प्रति श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे, और उन्हीं को अपना सखा मानते थे, प्रभु के साथ खेलते थे। प्रभु इनके साथ अनेक लीलाएँ किया करते थे। प्रभु इनको चोरी करना भी सिखाते थे भक्त माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे।

एक बार माधव दास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि उठ-बैठ नहीं सकते थे, पर जब तक इनसे बना ये अपना कार्य स्वयं करते थे और सेवा किसी से लेते भी नही थे। कोई कहे महाराजजी हम कर दें आपकी सेवा तो कहते नही मेरे तो एक जगन्नाथ ही हैं वही मेरी रक्षा करेंगे। ऐसी दशा में जब उनका रोग बढ़ गया वो उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गये, तब श्री जगन्नाथजी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुँचे और माधवदासजी को कहा की हम आपकी सेवा कर दें।

क्योंकि उनका इतना रोग बढ़ गया था कि उन्हें पता भी नही चलता था, कब वे मल मूत्र त्याग देते थे। वस्त्र गंदे हो जाते थे। उन वस्त्रों को जगन्नाथ भगवान अपने हाथों से साफ करते थे, उनके पूरे शरीर को साफ करते थे, उनको स्वच्छ करते थे। कोई अपना भी इतनी सेवा नही कर सकता, जितनी जगन्नाथ भगवान ने भक्त माधव दास जी की करते थे।

जब माधवदासजी को होश आया, तब उन्होंने तुरन्त पहचान लिया की यह तो मेरे प्रभु ही हैं। एक दिन श्री माधवदासजी ने पूछ लिया प्रभु से - “प्रभु ! आप तो त्रिभुवन के मालिक हो, स्वामी हो, आप मेरी सेवा कर रहे हो। आप चाहते तो मेरा ये रोग भी तो दूर कर सकते थे, रोग दूर कर देते तो ये सब करना नही पड़ता।” ठाकुरजी कहते हैं - "देखो माधव ! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता, इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की। जो प्रारब्ध होता है उसे तो भोगना ही पड़ता है। अगर उसको इस जन्म में नहीं काटोगे तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं नहीं चाहता की मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण अगला जन्म फिर लेना पड़े। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की लेकिन अगर फिर भी तुम कह रहे हो तो भक्त की बात भी नहीं टाल सकता। (भक्तों के सहायक बन उनको प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं प्रभु) अब तुम्हारे प्रारब्ध में ये 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे।" 15 दिन का वो रोग जगन्नाथ प्रभु ने माधवदासजी से ले लिया।

वो तो हो गयी तब की बात पर भक्त वत्सलता देखो आज भी वर्ष में एक बार जगन्नाथ भगवान को स्नान कराया जाता है (जिसे स्नान यात्रा कहते हैं)। स्नान यात्रा करने के बाद हर साल 15 दिन के लिए जगन्नाथ भगवान आज भी बीमार पड़ते हैं। 15 दिन के लिए मन्दिर बन्द कर दिया जाता है। कभी भी जगन्नाथ भगवान की रसोई बन्द नही होती पर इन 15 दिन के लिए उनकी रसोई बन्द कर दी जाती है। भगवान को 56 भोग नही खिलाया जाता, (बीमार हो तो परहेज तो रखना पड़ेगा)

15 दिन जगन्नाथ भगवान को काढ़ो का भोग लगता है। इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है। जगन्नाथ धाम मन्दिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं। काढ़े के अलावा फलों का रस भी दिया जाता है। वहीं रोज शीतल लेप भी लगया जाता है। बीमार के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है।

भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए है और अब 15 दिनों तक आराम करेंगे। आराम के लिए 15 दिन तक मंदिरों पट भी बन्द कर दिए जाते है और उनकी सेवा की जाती है। ताकि वे जल्दी ठीक हो जाएँ। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते हैं उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है, जिसके दर्शन हेतु असंख्य भक्त उमड़ते हैं।

खुद पे तकलीफ ले कर अपने भक्तों का जीवन सुखमयी बनाये, ऐसे भक्तवत्सलता है प्रभु जगन्नाथ जी



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