तकदीर का खेल
Updated: Apr 11
Kahani-तकदीर का खेल

बात बहुत पुरानी है. गुजरात के सूरत में मनसुख लाल नाम के एक रत्नो के वायपरी रहते थे. इनका कारोबार कीमती रत्न का था. मनसुख लाल का करोबार दुनिया के दूर तक के देशो में फेला हुआ था मनसुख लाल का पूरा सूरत शहर में बहुत इज्जत और रुतबा था. मनसुख लाल के दो बेटे थे जिनका नाम रामलाल और श्यामलाल था. रामलाल को बहुत घमंड था दौलत और रुतबे का जबकि श्यामलाल एक शरीफ और सुलझा हुआ इंसान था. रामलाल में घमंड के साथ-साथ इर्ष्या और बईमानी जैसे अवगुण भी थे. समय के साथ-साथ मनसुख लाल की उम्र बढ़ती जा रही थी. ऐसे में उनके दोनों बेटों ने कारोबार में पिता का अधिक से अधिक हाथ बटाना शुरू कर दिया था।
समय अपनी चाल से चलता रहा और एक दिन मनसुख लाल चल बसे और रामलाल और श्यामलाल के कंधों पर कारोबार का पूरा भार आ गया. रामलाल ने बड़ा भाई होने के नाते व्यापारिक फैसलों में अपनी मर्जी की चलानी शुरू कर दी. रामलाल बईमानी और मक्कारी भरे फैसले लेने लगा. असली रत्न के नाम पर वह नकली रत्न का व्यापार करने लगा, जिससे उसका मुनाफा बढ़ने लगा. इस गंदे काम से उसका चरित्र भी गंदा होने लगा था। वह परिवार में उन्मादी जैसा व्यवहार करने लगा दौलत के घमंड में . शरीफ और सुलझे हुए श्यामलाल को शुरू-शुरू में रामलाल की बईमानी का इल्म तो नहीं हुआ, परन्तु पूरे माजरे को समझने में उसे ज्यादा देर नहीं लगी जब उसने उसके व्यवहार में परिवर्तन देखा तो।
रामलाल की हरकतो सेश्यामलाल को बड़ा दुःख हुआ। वह रामलाल को सही रास्ते पर लाने और समझाने की कोशिश भी की। परन्तु वह काम्यब न हुआ रहा। उल्टा रामलाल श्यामल से खफा हो गया और व्यापार में बिखरने लगा।बंटबारे में भी उसने बईमानी की साजिश रची.। घर में कलह का माहौल फैला दिया। अंततः रामलाल अपने षड़यंत्र में सफल रहे और श्यामल के हिस्से के व्यापार पर भी कब्ज़ा कर बैठे। रामलाल के व्यव्हार से दुखी श्यामल ने शहर में दूसरी जगह अपना ठिकाना बनाया और अपने व्यापार को नए झरोखों से शुरू किया। ईमानदारी की झलक पर श्यामलाल का व्यापार जल्दी ही आगे बढ़ने लगा।
एक तरफ़ईमानदारी के काम से श्यामलाल ने अपने पिता की तरह इज्जत और रुतबा हासिल किया वहीँ दूसरी तरफ रामलाल की करतूतों की पोल खुलने लगी थी. नकली रत्न के व्यापार के कारण रत्न बाज़ार में रामलाल की साख को जोरदार धक्का लगा और लोगो ने उस पर विश्वास करना बंद कर दिया उसके व्यापार का दायरा सिमटने लगा. अंततः नौबत यहाँ तक आ गई कि बाहर क्या, अपने शहर का भी कोई व्यापारी रामलाल का नाम लेने से भी तौबा करने लगा. अब तो नौबत यहाँ तक आ गई कि रामलाल को अपना घर, दूकान, सामान तक धन के अभाव में बेचना पड़ रहा था. वह परिवार सहित सड़क पर आ गया औरजल्दी ही रामलाल के हाथ से सबकुछ निकल गया. अब रामलाल को अपने किए पर पछतावा हो रहा था. परन्तु उसकी तक़दीर ने जो खेल खेल दिया था उससे आसानी से पीछे आना उसके लिए संभव नहीं था. दूसरी तरफ श्यामलाल की तक़दीर का खेल था जिसकी बदौलत वह रंक से राजा बन गया था.
जब श्यामलाल को पता चला की उसका भाई किस बदल स्थिति में आ चुका है तो हमें बहुत ही खेद हुआ वाह जल्दी से अपने भाई रामलाल के पास पहुचा और उस पुरानी बाते भुलने को कहा या उसकी मदद करने की कोशिश की और उसे परिवार सहित अपने पास ले आया रामलाल के लाख मना करने के बाद भी . यह भी तक़दीर का ही खेल था कि जिस भाई के साथ रामलाल ने बदसलूकी कर उसे सड़क पर पहुंचा दिया था, वही भाई आज उसे सड़क से उठाकर अपने घर में ले आया था.